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बैतूल जिला एक नजर में

राजा टोडरमल के सर्वे के अनुसार अखंड भारत का मध्य केन्द्र,सतपुड़ा पर्वतमाला की श्रृंखला में सुरम्य मनमोहक और घने जंगलों से आच्छादित वादियों में सतपुड़ा के पठार पर बसा मूलत: बदनूर किन्तु बदनूर से 05 किमी दूर स्थित बैतूल बाजार के नाम से जाना गया, बैतूल जिला प्राकृतिक नैसर्गिक सौन्दर्य से भरपूर होने के साथ-साथ खनिज एवं वन औषधीय सम्पदा से भी भरपूर है। मध्यप्रदेश के दक्षिणी हिस्से में बसे बैतूल जिले की उत्तरीय सीमा होशंगाबाद जिले एवं पूर्व के मकड़ई राज्य जो वर्तमान में खंडवा जिले में है से दक्षिणी सीमा अमरावती जिले, पूर्वी सीमा छिंदवाड़ा जिले से तथा उत्तर पूर्व के हिस्से मे नागपुर जिले से तथा पश्चिम में होशंगाबाद जिले से मिलती है। बैतूल समुद्र तल से लगभग 2000 फुट उचाई पर बसा है, इसका कुछ क्षेत्र 2000 से 3000 फुट उचाई पर है बैतूल के दक्षिण पश्चिम कोने में बेरार (महाराष्ट्र) की चिखलधरा पहाड़ी रेंज से सटी खामला की पहाड़ी समुद्र तल से लगभग 3700 फिट की उचाई पर स्थित है इसी के पास कुकरू में बुच पांईट मशहूर है

भौगोलिक दृष्टि से देखा जाये तो बैतूल जिले का 60 प्रतिशत हिस्सा उपजाऊ तथा प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है तथा 40 प्रतिशत हिस्सा अनुपजाऊ शुष्क एवं बंजर है। बैतूल जिले में एशिया का विशालतम थर्मल पावर स्टेशन सारणी में स्थित है तथा सारणी से लगा हुआ पाथाखेड़ा क्षेत्र कोयला उत्पादन के लिये देश भर में मशहूर है। बैतूल का तिखाड़ी का तेल बैतूल आईल के नाम से विदेशों में भी प्रसिद्ध है तो बैतूल का सागौन पूरे देश में अपनी उच्चकोटी के सागौन के लिये पहचाना जाता है।

आजादी में योगदान-मूलत: शंात एवं भाईचारे की भावना से ओतप्रोत बैतूल जिले ने 1857 तथा 1947 की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। सन 1857 में महान क्रांति के नता तात्याजी टोपे 7 नवम्बर को मुलताई पहुंचे थे तथा एक दिन रूककर बैतूल जिले में क्रांति का अलख जगा गये जो जिसकी चिंगारी 1947 तक निरंतर भडक़ती रही। 1857 के होशंगाबाद संभाग के तत्कालीन कमिश्रर मेनर एर्सकाईन ने अपनी किताब में लिखा है कि क्रंाति की प्रतीक छोटी चपातियों का रहस्यमय ढ़ंग से वितरण किया जा रहा है। इसलिये सागर और ानर्मदा के मैदानी इलाकों में एक भी व्यक्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता, उसी समय इटावा के ग्राम कोटवार ने असीर थाना जो वर्तमान में असीरगढ़ किले के नाम से जाना जाता है में इस बात कि रिपोर्ट लिखवाई कि नाना साहेब और तात्या टोपे के आदमी गांव गांव में नारियल पाल और सुपारी बांट कर अंग्रजों के खिलाफ क्रांति का सूत्रपात कर रहें हैं। 1857 की क्रांति का दौर गुजरने बार 1866 में अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति के मददगारों को अवर्णनीय क्रुरतम तरीके से दमन किया।

बैतूल जिले में क्रांति के सूत्रधार रामदीन तथा शिवदीन पटेल बंधुआंं की 922 एकड़ जमीन सहित घर,मकान,जेवर, कपड़े तथा राजसात कर लिये गय। 1896 में बैतूल जिले में आर्य समाज का अभ्यूदय हुआ, उसकी शाखाएं स्थापित हुई। 1922 में उत्तरप्रदेश के धार्मिक एवं राष्ट्र भक्त नारायण स्वामी के आव्हान पर बैतूल बाजार में सेवा समिति की स्थापना हुई, जिसने अंग्रेजों से असहयोग से सिद्धंातों को अपनाते हुए अपने स्वंयसेवक भर्ती किये, जो रात्रि गस्त आदी करते थे। यही पर पहले राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हुई। जिसके पहले सरपंच दीनानाथ पटेल तथा दिवाकरराव और गजानन पटेल पंच बने इसी समिति की सहायता से 1920 में स्थापित कंाग्रेस को भी बल मिला और उसी के परिणाम स्वरूप 1922 में ताप्ती किनारे बसे गांव घनोरी में श्रीमति कस्तूबा गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस का प्रांतीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ।

इसके बाद सन् 1932 में अपने हरिजनोंद्वार कार्यक्रम के तहत महात्मा गांधी भी बैतूल बाजार और मुलताई दौरे पर आये जिससे स्वतंत्रता के आंदोलन को ताकत मिले इन सबके बीच सबसे उल्लेखनीय यह है कि बैतूल जिले के आदिवासियों ने बैतूल जिले के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1930 में चिखलार से जंगल सत्याग्रह शुरू हुआ जिसमें दो लोग मारे गये बाद में इसकी कमान शहीद गंजन कोरकू ने संभाली और बंजारी ढाल में हजारो आविासियों के साथ जंगल कानून तोड़ा जिसमें पुलिस की गोली से कोवा गांड की शहादत हुई तथा इस क्रांति के नायक गंजन कोरकू फरार होने में सफल रहे। घोड़ाडोंगरी में 21 व 22 अगस्त 1942 में सरदार विष्णुसिंह गोंड के नेतृत्व में तार काटे गये पटरी उखाड़ी गई लकड़ी डीपो जलाया गया। सरदार विष्णुसिंह गोंड पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हे फंसी की सजा दी गई उनकी पत्नि को भी आजीवन कारावास दिया गया उसके एक साथी बिरसा गोंड को गोली मारने के बाद जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो गई उसे बूटों से कुचला गया। इस तरह स्वतंत्रता के आंदोलन में बैतूल जिले में भी सैकड़ों लोगों ने अपनी प्राणहूती अर्पित की है इतना ही नहीं अपने परिवार को भूखा रखकर अपने पत्नि के गहनों को बेचकर श्री पुरूषोत्तम शास्त्री आंबेकर जी तथा डा शारदा प्रसाद निगम ने शहीद विष्णुसिंग गोंड को बचाने के लिये पहले हाईकोर्ड और बाद प्रिवीं कांउसिल लंदल में मुकदमा लड़ा। जिनका परिवार आज भी अभावग्रस्त है। बैतूल जिला अपने इन शहीदों को नमन करता है।

ख्यातनाम हस्तियां-सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं पूर्व उपराष्ट्रपति माननीय हिदायतुल्ला की जन्म स्थली बैतूल है। कवि भवानीप्रसाद मिश्र, हास्य कवि शैल चतुर्वेदी, प्रदीप चौबे की कर्मस्थली एवं नीरजपुरी, चन्द्रशेखर त्रिपाठी की जन्मस्थली बैतूल ही है। सुप्रसिद्ध ओलम्पियन खिलाड़ी असलम शेर खां हाकी फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं चयन समिति के सदस्य रहे गुफराने आजम बैतूल से चुनकर संसद तक पहुंचे हैं। बैतूल के ही श्री एस.एस. तोमर, श्री पृथ्वीपाल सिंह आजाद (पाली भैया)एवं नारायण जेधे ने विदेशों में हाकी खेलकर बैतूल का मान बढ़ाया है। बैतूल के अनेक युवाओं ने रंगमंच पर टीवी सीरियलों में खेल मैदान पर तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में बैतूल का नाम राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है।

दर्शनीय एवं धार्मिक स्थल-बैतूल जिले का धार्मिक महत्व रामायण एवं महाभारतकालीन माना जाता है। अनेक संत महात्माओं की तपस्थली रहा है बैतूल जिला। किवदंती के अनुसार बैतूल जिला महाभारत काल से ही आबाद है। लंकापति रावण के पुत्र मेघनाथ के नाम से मेला भरता है तथा मेघनाथ की पूजा की जाती है। महाभारत काल शैववंशीय काल होने से आज भी बैतूल जिले में जितने भी प्राचीन मंदिर है शिवमंदिर ही है। जिले के आदिवासी भी बड़े देव के नाम पर शिवपूजा ही करते हैं। बैतूल के दर्शनीय स्थल में मुक्तागिरी नामक स्थान राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। बैतूल परतवाड़ा मार्ग पर जिला मुख्यालय से लगभग 100 किमी दूर स्थित यह स्थान प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है। यहां अलग-अलग पहाडिय़ों पर बने 52 जैन मंदिरों की श्रृंखला है जो अपनी वास्तुशिल्प का बेजोड़ उदाहरण है। बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर बैतूल रानीपुर मार्ग पर भोपाली नामक स्थान भी प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यहां प्रतिवर्ष शिवरात्री पर्व पर मेले का अयोजन किया जाता है। यहां तीन प्राकृतिक गुफायें है। एक में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है शिव प्रतिमा से उपर पहाड़ी चट्टान के किनारे बनी प्राकृतिक गुफ को पार्वती कुफा कहते है। इस गुफा में नैसर्गिक जल पल्लव वर्ष पर्यंत रहता है।

कहा जाता है कि महाभारत काल में यहां अर्जुन ने अपनी गुप्त साधना की थी इसी प्रकार पारसडोह सालबर्डी भी दर्शनीय स्थल होने के साथ साथ प्राकृतिक सुन्दरता के लिये मशहूर है तथा प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर्व यहां मेला लगता है। वर्तमान में बालाजीपुरम एक दर्शनीय स्थान है। सूर्य पुत्री एवं शनि की बहन ताप्ति नदी का उद्गम स्थल मुलताई ताप्ती नदी का पारसडोह बारालिंग एवं घोघरा दर्शनीय एवं रमणीक स्थान है। ताप्ती का महत्व आदिकाल से है और माना जाता है कि संपूर्ण राष्ट्र में ताप्ती ही एक मात्र ऐसी नदी है जिसमें किसी भी प्रकार की अस्थि तीन दिनों में गल जाती है। इसमें स्नान करने से शनि प्रकोप से मुक्ति मिलती है। साथ ही यह भी खोज का विषय है कि ताप्ती नदी के किनारे अधिकांश पत्थर काले रंग के तथा कुछ कुछ शिवलिंग के आकृति लिये होते हैं।

आयुर्वेदिक वन संपदा में भी बैतूल जिला अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। बैतूल जिले के जंगलों में अमरबेल, अमलतास, आंवला, अर्जुन, असगंध, अपामार्ग, वंशलोचन, मूसली, बेल, भीलवा,चिराठा, बायबिडंग, दारहल्दी, डीकामाली, गोखरमुंडी, गुडबेल, शतावार,कौंच,देवदारू, गुलर, हर्रा, बाल हरडा, छोटा गोखर चंदरजोत दुष्कर, कंद ग्वारपाठा, गुरूलोचन, जामुन, जमीकंद, नीम, मुसलीकंद, पलासबीज, अघाडा, रीठा, गुंजा, लाल-सफेद तेजबल, ब्राम्ही, सहित लगभग 220 प्रकार के औषधीय पौधे हमारे जिले की वन संपदा हैं।