नर्स अरूणा शानबाग का निधन हो गया। वो ढंग से जी पायी ना मर पायी, किस्तों की जिंदगी और किस्तों की मौत का नाम था अरूणा। आरोपी वार्ड बॉय सात वर्ष की सजा के बाद छूट गया। मेडिकल ट्रमोलॉजी के अनुसार अरूणा 42 वर्ष कोमा में रही थी। वो कभी कोमा में थी ही नहीं, गोया की वो लगातार सड़ाध भरे सिस्टम से कम्यूनिकेट करती रही सवाल पूछती रही और उसने अंतत: साबित कर दिया की कोमा में वो नहीं थी, दरअसल कोमा में सडांध भरा सड़ा-गला सिस्टम था, जो अब पैरालाईज भी हो चुका है। वह सिस्टम जिसमें जिसमें सिर्फ फैसले होते रहें है, न्याय का कॉलम निरंक है। मानव अधिकार आयोग ऐसे अपराधियों को बचा कर इसे अपनी उपलब्धियां बताते रहे है। अरूणा के लिये एक पत्रकार ने न्यायालय से मर्सी किलिंग (पैसिव यूथेनेशिया ) की अपील की थी जिसे न्यायालय ने ठुकरा दिया था। फिल्म गुजारिश में पेशे से जादूगर नायक भी क्वाड्रोप्लेजिया नामक बीमारी से पीडि़त है वो सिर्फ सोच सकता है हिलडुल नहीं सकता है यहां तक की अपनी नाक पर बैठी मक्खी भी नहीं भगा सकता है, नायक वर्षो से बिस्तर पर पड़ा है। नायक का वकील उसके लिये मर्सी किंलिंग की अपील करता है जिसकी सुनवाई नायक के न्यायालय पहुंचने में अक्षम होने के कारण उसके घर में ही होती है। नायक विरोधी पक्ष के वकील को जादू दिखने की बात कर कर एक संदूक में बंद कर देता है और ताला लगा देता है, कुछ देर बाद विरोधी वकील दम घुटने के कारण चिल्लाने लगता है, थोड़ी देर बाद ताला खोल कर संदूक में से विरोधी पक्ष के वकील को निकाला जाता है। तब नायक यह कृत्य कर जज को समझाना चाहता है कि देखिये एक इंसान पांच मिनट संदूक में रहा तो उसका दम घुटने लगा, मैं तौ कई वर्षो से घुट घुट कर जी रहा हूं। नायक चाहता है कि पैसिव यूथेनेशिया के तहत उसे मौत दी जाये। अरूणा भी ठीक इसी तरह सिर्फ मेडिकली लाईव रही। बरहाल अरूणा जाते-जाते भी शायद एक तोहफा दे गयी है जिसमें पैसिव यूथेनेशिया का केस तो वो हार गयी लेकिन साल 2011 में दिए गए इस फ़ैसले के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अरुणा की तरह वेजिटेटिव स्टेट में है या वेंटिलेटर पर है और उनका खय़ाल रखने वालों, परिवार वालों और डॉक्टरों को लगता है कि उनकी हालत सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है तो वो ‘पैसिव यूथेनेशिया की मदद ले सकते हैं। पैसिव यूथेनेशिया के तहत मरीज को धीरे-धीरे लाइफ़-सपोर्ट से हटा दिया जाता है। हमने अजीब नियम बनाये रखें हैं, हिन्दुस्तान में एक जैसे दो प्रकरणों में अलग-अलग फैसले दिये जाते हैं, मसलन किसी में किरायेदार जीत जाता है तो किसी में मकान मालिक। स्पष्ट यह होना चाहिये की किरायेदार कितने भी समय मकान में रह ले मकान पर अधिकार मकान मलिक का ही होगा या फिर पचास वर्ष कोई किरायेदार मकान में रह लेता है तो मकान किरायेदार का होगा। अदालतों में इसी वजह से अधिकतर फजूल के प्रकरण लाद दिये गये हैं, जिनकी वजह से संवेदनशील प्रकरण भी इनकी चपेट में आ गये हैं। कुछ तो क्राईटएरिये और धाराओं की जटिलताओं को सरल करना होगा, इसके अभाव में सकरी गली में से कई आरोपी निकल जाते हैं। दरअसल बाजार का वैश्वीकरण तो हुआ जिसने करूणा को लील लिया, जरूरत करूणा के वैश्वीकरण की है। अरूणा की इतने वर्षो तक सेवा करने वाली उसकी सभी सहयोगियों को ह्रदय से नमन। अरूणा तथाकथित कोमा में भी तो भी सवाल कर रही थी अब मरकर अपने पीछे हमेशा के लिये कुछ सवाल छोड़ गयी है।
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