बैतूल। सत्य कबीर दयानाम समिति बैतूल द्वारा सतगुरू कबीर आश्रम अभिनंदन सरोवर के पीछे कोठी बाजार बैतूल में सतगुरू कबीर प्रगट उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर नपा अध्यक्ष अलकेश आर्य, दीवान खेमदास साहेब मुक्तामणी आश्रम काटोल महाराष्ट्र, साध्वी गौरामती समीरपुर, बस्तीराम सीताडोंगरी के द्वारा चन्द्रभागा महादेव भुमरकर द्वारा निर्मित कबीर चौका एवं भागरती सुखदेव डोंगरे द्वारा माता पिता की स्मृति में कबीर चबुतरे का लोकापर्ण किया गया। उपस्थित लोगो को संबोधित करते हुय अलकेश आर्य ने कहा कि कबीर भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही संत हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। महात्मा कबीर के प्राकट्यकाल में समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां चारों ओर धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा, ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम पर था। आम जनता धर्म के नाम पर दिग्भ्रमित थी। मध्यकाल जो कबीर की चेतना का प्राकट्यकाल है, पूरी तरह सभी प्रकार की संकीर्णताओं से आक्रांत था। उसी काल में अंधविश्वास तथा अंधश्रद्धा के कुहासों को चीर कर कबीर रूपी दहकते सूर्य का प्राकट्य भारतीय क्षितिज में हुआ। डॉ सुखदेव डोंगरे ने कहा कि वे वाणी के डिक्टेटर थे।
‘जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है, उसे उसी रूप में कहलवा लिया। भाषा कुछ कबीर के सामने लाचार सी नजऱ आती है। उसमें मानो ऐसी हिम्मत ही नहीं है कि इस लापरवाह फक्कड़ की किसी फरमाइश को नाहीं कर सके। डॉ रमाकांत जोशी ने कहा कि कबीर ने सहज भावाभिव्यक्ति के लिए साहित्य की अलंकृत भाषा को छोड़ कर लोक-भाषा को अपनाया-भोजपुरी,अवधी,राजस्थानी,पंजाबी,अरबी ,फारसी के शब्दों को उन्होंने खुल कर प्रयोग किया है। यह अपने सूक्ष्म मनोभावों और गहन विचारों को भी बड़ी सरलता से इस भाषा के द्वारा व्यक्त कर लेते थे। कबीर की साखियों की भाषा अत्यंत सरल और प्रसाद गुण संपन्न है। कहीं-कहीं सूक्तियों का चमत्कार भी दृष्टिगोचर होता है।
हठयोग और रहस्यवाद की विचित्र अनुभूतियों का वर्णन करते समय कबीर की भाषा में लाक्षणिकता आ गयी है.बीजक कबीर-ग्रंथावली और कबीर -वचनावली में इनकी रचनाएं संगृहीत हैं। कार्यक्रम में अध्यक्ष नागोराव डोंगरे, जसवंत बचले, भद्दु पाटिल, महादेव भूमरकर, भाऊराव खातकर, हेमराज चौरासे, फत्या पाटिल, लक्ष्मण प्रसाद मालवीय, चंद्रकला डोंगरे, भागरती डोंगरे, साहेबलाल कापसे, जसवंती चौकीकर, शोभा वानखेड़े, लखनलाल साहू, शांतिलाल डोंगरे, डीएच मासोदकर, तुलसीराम साहू, एसएल बचले, सतीश जोंधलेकर, नरूल लतीफ कुरैशी, सुरेश गायकवाड़, रामशंकर आवलेकर, यशवंत शेषकर आदि उपस्थित थे।