बाजीराव मस्तानी संजय लीला भंसाली का महत्तवाकांक्षी प्रोजेक्ट रहा है, जिसके लिए वो 2003 से ही प्रयासरत हैं। उस वक्त उन्होने इस फिल्म के लिए सलमान और एश्वर्या को आफर किया था लेकिन किन्ही कारणों से यह फिल्म नहीं बन पाई। परन्तु भंसाली के दिलो-दिमाग में यह विषय जीवत रहा। लोक प्रिय विचार है कि किसी विषय को विचारते-विचारते उससे प्रेम हो जाता है। भंसाली भी बाजीराव मस्तानी को लेकर ऐसे ही व्याकुल रहें हैं। फिल्म की यूएसपी भव्य सेट, शानदार संवाद, दिपिका, रणवीर, तन्वी आजमी की अदाकारी है। मस्तानी के रूप में दीपिका सुंदर लगी हैं मगर योद्धा के रूप में वह और निखर कर आती हैं। बाजीराव मस्तानी की शुरूआत ग्रांड है अंत तक जाते-जाते फिल्म भटक जाती है। भंसाली का देवदास का हैंगओवर अभी तक नहीं उतरा है जो अंतिम दृश्यों में साफ दिखता है। दोनो नायिकाओं का संयुक्त नृत्य भी देवदास की तर्ज पर ही फिल्मांकन किया है।
फिल्म का म्यूजि़क और डांस बेहतरीन है। पर फिल्म में कहीं भी मेल खाता नहीं दिखेगा। और स्क्रीन पर फिल्म का सबसे बेहतरीन गाना आपको पिंगा ही लगेगा। फिल्म के बाकी गाने कहीं ना कहीं फिल्म का क्रम तोड़ते हैं और साथ में मिल नहीं पाते। फिल्म के सेट पर जितनी मेहनत की गई है वो फिल्म में दिखती है। एक तरफ जहां फिल्म भव्य है वहीं फिल्म का मेकअप और कॉस्टयम बेहतरीन है। दीपिका पादुकोण को बिल्कुल कम मेकअप में दिखाने की कोशिश की गई है। उनके स्किन टोन को छोड़कर उन पर कोई मेहनत नहीं की गई है। प्रियंका चौपड़ा के पास खास करने के लिए कुछ नहीं था, फिर भी उन्होने कम फुटेज में प्रभावित किया। रणवीर कहीं-कहीं अतिरेक में उर्जा खर्च करते नजर आये जिससे उनपर आधुनिक मॉडल का लुक नजर आया। संजय लीला भंसाली जो नाम लिखते हैं उसमें लीला उनकी मां का नाम है। उनकी फिल्म में नायिकाओं को भी सशक्त भूमिका दी जाती रही है।
फिल्म के एक दृश्य में नायक की मां जो मस्तानी को पसंद नहीं करती है, कहती है मुझे गर्व है कि तुम औरतों की इ”ात करते हो पर मुझे मस्तानी कबूल नहीं है। फिल्म का आधार प्रेम त्रिकोण है जिसमें नायक की पत्नी और प्रेयशी का द्वंद दिखाया गया है। नायक कहता है कि मस्तानी उसका प्रेम है ना की अय्याशी। नायक की पत्नी राधा का उदाहरण देती है, तो प्रियेशी नायक की पत्नी को दिलासा देती है की तुम्हारा पति तुम्हें हिम्मत समझता है। पर गोया की प्रेम गली तो सकरी होती है इसमें दूसरे की जगह नहीं होती है। इतिहास में उल्लेख है कि पेशवा श्रीमंत बाजीराव बल्लाल भट ने अपने जीवनकाल में 40 से अधिक युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारा। लेकिन तलवार की ताकत से सबको झुका लेने वाला यह वीर, मस्तानी के हाथों अपना दिल हार बैठा। आज भी पूना से 20 मील दूर पाबल गांव में मस्तानी का मकबरा उनके त्याग दृढ़ता तथा अटूट प्रेम का स्मरण दिलाता है।