सुरों में अलाप का कन्टेंट सुरों का लहराकर उपर नीचे जाना होता है, ठीक वैसे ही इंदीवर के गीत और उनका जीवन अलाप की तरह ही रहा। उन्होने बेहद शानदार गीत के साथ-साथ घटिया गीत भी लिखे। देश भक्ति की कविता लिखकर जेल की हवा खाई वहीं स्त्रीयों से संबंध और शराबनोशी करते रहे। इंदीवर का पूरा व्यक्तित्व एक आलाप की तरह ही आंका जाएगा। शब्द की टीम आज इंदीवर के गीतों के जरिये उनका सिटी करने जा रही है। महान मृत कलाकार का स्कैन और एक्सरे गीत प्रेमी बरसों-बरस करते रहते है। श्यामलाल बाबू राय उर्फ इंदीवर का जन्म झांसी मे वर्ष 1924 में कलार परिवार में हुआ था। इनके पिता हरलाल राय व मां का निधन इनके बाल्यकाल में ही हो गया था। इनकी बड़ी बहन और बहनोई घर का सारा सामान और इनको लेकर अपने गांव चले गये थे।
कुछ माह बाद ही ये अपने बहन-बहनोई के यहाँ से बरूवा सागर वापस आ गये थे। बचपन था, घर में खाने-पीने का कोई प्रबंध नहीं था। उन दिनों बरूवा सागर में गुलाब बाग में एक फक्कड़ बाबा कहीं से आकर एक विशाल पेड़ के नीचे अपना डेरा जमाकर रहने लगे थे। वे कहीं भिक्षा माँगने नहीं जाते थे। धूनी के पास बैठे रहते थे। बहुत अ’छे गायक थे। वे चंग पर जब गाते और आलाप लेते थे, तो रास्ता चलता व्यक्ति भी उनकी स्वर लहरी के प्रभाव में गीत की समाप्ति तक रूक जाता था। जब लोग उन्हें पैसे भेंट करते थे तो वह उन्हें छूते तक नहीं थे। फक्कड़ बाबा के सम्पर्क में इंदीवर को गीत लिखने व गाने की रूचि जागृत हुई। फक्कड़ बाबा गांजे का दम लगाया करते थे। बाबा को भेंट हुये पैसों से ही इंदीवर चरस और गांजे का प्रबन्ध करते थे।
इंदीवर उन बाबा की कण्डे की आग में सेंकी जाने वाली मोटी रोटी बना दिया करते थे, स्वयं खाते और बाबा को खिलाते फिर बाबाजी का चिमटा लेकर राग बनाकर स्वलिखित गीत भजन गाया करते थे। युवा होते श्यामलाल ‘आजाद (इंदीवर) की शोहरत स्थानीय कवि सम्मेलनों में बढऩे लगी और उन्हें झाँसी, दतिया, ललितपुर, बबीना, मऊरानीपुर, टीकमगढ़, ओरछा, चिरगाँव, उरई में होने वाले कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा जिससे इन्हें कुछ आमदनी होने लगी। युवा श्यामलाल ‘आजाद (इंदीवर) को एक बार बरूवा सागर में हुए कवि सम्मेलन में अंग्रेजी सत्ता को कटाक्ष कर उनके गाए गाने ‘ओ किराएदारों कर दो मकान खाली….पर जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। इसी बीच इनकी मर्जी के बिना इनका विवाह झाँसी की रहने वाली पार्वती नाम की लड़की से करा दिया गया।
जिससे वह अनमने रहने लगे और जबरदस्ती की गई शादी के कारण रूष्ट होकर लगभग बीस वर्ष की अवस्था में मुम्बई भागकर चले गए जहाँ पर इन्होंने दो वर्ष तक कठिन संघर्षों के साथ सिनेजगत में अपना भाग्य गीतकार के रूप में आजमाया। वर्ष 1946 में प्रदर्शित फिल्म ‘डबल फेस में इंदीवर के लिखे गीत पहली बार लिए गए किन्तु फिल्म ‘यादा सफल नहीं हो सकी और श्यामलाल बाबू ‘आजाद से ‘इंदीवर के रूप में बतौर गीतकार अपनी खास पहचान नहीं बना पाए और निराश हो वापस अपने पैतृक गाँव बरूवा सागर चले आए। वापस आने पर इंदीवर ने कुछ माह अपनी धर्मपत्नी के साथ गुजारे।
इस दौरान इन्हें अपनी पत्नी पार्वती से विशेष लगाव हो गया जो अंत तक रहा भी। इंदीवर जी को मट्ठा पीने और बाँसुरी बजाने का बहुत शौक था। वे बेतवा नदी के किनारे, बरूवा तालाब के किनारे घण्टों बाँसुरी बजाते हुए मदमस्त रहते थे। पार्वती के कहने से ही ये पुन: मुम्बई आने जाने लगे और बी व सी ग्रेड की फिल्मों में भी अपने गीत देने लगे। यह सिलसिला लगभग पाँच वर्ष तक चलता रहा। इस बीच इन्होंने धर्मपत्नी पार्वती को अपने साथ मुम्बई चलकर साथ रहने का आग्रह किया परन्तु पार्वती मुम्बई में सदा के लिए रहने के लिए राजी नहीं हुई।
इंदीवर इसके लिए तैयार नहीं हुए और पत्नी से रूष्ट होकर मुम्बई में रह कर पूर्व की भांति फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने लगे। इनकी मेहनत रंग लाई और वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘मल्हार के गीत ‘बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम ने सिने जगत में धूम मचा दी। फिल्म इस गीत के कारण काफी चली और इंदीवर स्वयं की पहचान बतौर गीतकार बनाने में सफल हुए। वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म अमानुष के लिए इंदीवर को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इन्दीवर से उनका पैतृक गांग बरूवा सागर छूटने लगा और उनके लिखे गीत नित नई-नई ऊंचाईया पाने लगे।
नाम, शोहरत, शराब और पैसा ने उन्हे भटकाया भी, पहले पंजाबी मूल की एक स्त्री इनके जीवन में आई जिससे बाद में अनबन हुई और पुत्र के उत्तराधिकार के लिए मुकदमेबाजी भी हुई। प्रेम के नाम पर की गई अय्याशी अमूमन अदालतों पर ही खत्म होती है। फिर दूसरी महिला जो गुजराती मूल की थी एवं मलयालम फिल्मों की हीरोइन भी रही और जिसके पहले से एक बेटी भी थी, इंदीवर के जीवन में आई जिसने इनको प्यार किया व समर्पित भी रहीं फिर भी इंदीवर अपनी पहली धर्मपत्नी पार्वती को नहीं भूल पाए। पार्वती बहुत स्वाभिमानी स्त्री थी, उसने इंदीवर के लाख चाहने पर भी कभी भी उनसे एक पैसा अपने भरण-पोषण के लिए नहीं लिया और इनकी प्रतीक्षा में बरूवा सागर में एक छोटी-सी दुकान आजीवन चलाकर अपना गुजर-बसर किया। बताते है कि इंदीवर ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की हैसियत से मिलने वाली पेंशन पार्वती के लिए कर दी थी।
गोया की नकली प्रेम टिक नहीं सकता है और असली प्रेम की कार्बन कॉपी नहीं होती है। अस्सी के दशक में बप्पी लहरी के ‘डिस्को संगीत की धूम रही, प्रतियोगिता में बने रहने के लिए इंदीवर को स्वयं को वक्त के सांचे में ढाल लिया था । बप्पी दा के संगीत से सजी ‘हिम्मतवाला एवं ‘तोहफ़ा के लिए टाईमपास गीत ‘ नैनो में सपना(हिम्मतवाला), ‘प्यार का तोहफ़ा तेरा(तोहफ़ा) लिखें । इस तरह मन ही मन फि़ल्म संगीत के बदलते तर्ज को स्वीकार कर कविताई से समझौता कर लिया था, जीवन के उत्तरार्ध तक वह सक्रिय रहे । इसी दौरान उन्होने एक गीत सैक्सी – सैक्सी मुझे लोग बोलें गीत लिखा जिस की निंदा के कारण उन्होने सार्वजनिक माफी मांगी। अपने जीवन के आखिरी दिनों में वे कवि रुप में स्वयं को पुनस्थापित करने के लिए प्रयासरत थे।
इंदीवर 26 फरवरी, 1997 को अपने पैतृक नगर बरूवा सागर में होने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने मुम्बई से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हृदयाघात पड़ा और वह वापस मुम्बई लौट गये। लगभग चार दशक तक अपने गीतों से हम लोगों को भावविभोर करने वाले इंदीवर 28 फरवरी 1997 को सदा के लिए अलविदा कह गए।
स्टे्रट ड्राईव बाय सपन दुबे