बैतूल। जेएच कॉलेज में प्राचार्य सतीश जैन के मार्गदर्शन एवं उ”ा शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार व्यक्ति विकास प्रकोष्ठ द्वारा पंडित दिवाकर शास्त्री का विशेष व्ख्याख्यान ‘उपनिषदों की पंचकोषीय अवधारणा’ आयोजित किया गया। इस अवसर पर विषय को गहन बताते हुए श्री शास्त्री ने कहा कि कोष मतलब खजाना, पंचमहा कोष आत्मा के पांच रक्षक हैं और पंच तत्वों वायु, जल, अग्नि आकाश एवं पृथ्वी से हमारा शरीर बना है।
वह इन्हीं से बनता है और इन्हीं में विलय हो जाता है। पंचकोष अन्नमय कोष के विषय में बोलते हुए उन्होने कहा भोजन ऋतु के अनुसार थोड़ा एवं संतुलित करें पहले नाश्ता फिर अंतराल के बाद भोजन फिर शाम भोजन जीवन का समय प्रबंधन ठीक होगा तो शरीर ठीक होगा। अन्नमय कोष सफल होने के बाद ही प्राणमय कोष की बात करे। प्राणमय कोष यह उर्जा स्वरूप है जिसका प्राणमय कोष मजबूत है वह राम,कृष्ण, गांधी, बौद्ध, विवेकानंद के समान महापुरूष बन जाता है।
जिसका प्राणमय कोष मजबूत होगा उसको सुख-दु:ख का अहसास नहीं होगा। संतुलित जीवन जीते हुए प्राणायाम अनुलोम विलोम कपाल भारती करें। प्राणमय कोष मजबूत होगा। ब्रह्मचर्य का पालन करे। मनोमय कोष के विषय में बोलते हुए उन्होने कहा कि मन की तरंगे इतनी तीव्र है कि वायु के वेग से भी तेज है योग एवं अभ्यास से मन को केन्द्रित किया जा सकता है, मनोमय कोष मजबूत नहीं होगा तब तक आपके व्यक्तित्व का विकास नहीं होगा।
विज्ञानमय कोष के विषय में उन्होने बताया की आत्मा का ज्ञान हो ब्रह्म का ज्ञान हो तभी आनंदमय कोष जाग्रत होगा। संसार के क्षणिक सुखों-दु:खों को छोडऩे पर ही आनंदमय कोष तक पहुंच सकेंगे। कोई आपका मित्र नहीं है, श्वास ही आपका असली मित्र है श्वास गई तो सब कुछ खत्म। कार्यक्रम का संचालन डॉ रमाकांत जोशी द्वारा व आभार डॉ पुष्पा रानी आर्य द्वारा व्यक्त किया गया। इस अवसर पर प्रभारी प्राचार्य डॉ प्रमोद मिश्रा, डॉ राकेश तिवारी, डॉ अर्चना मेहना, व्यक्तित्व विकास संयोजक डॉ अल्का पांडे आदि उपस्थित थे।