चार युगो से जिसका नाता उसे कोई पहचानता
बैतूल , ताप्तीचंल में बसे बैतूल जिले में पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल द्वारा नर्मदा एवं ताप्ती का सांस्कृतिक इतिहास विषय पर आयोजित शोध संगोष्ठी में प्रथम वक्ता के रूप में मां सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष एवं मां ताप्ती जागृति मंव केे संस्थापक , लेखक , चिंतक , साहित्यकार , कथाकार , पत्रकार रामकिशोर पंवार ने कहा कि इसे महज दुर्र:भाग्य ही कहा जा सकता है कि जिस क्षेत्र का एक दो नहीं चार युगो से नाता रहा है आज उसी को अपनी पचहान बताने के लिए इतिहास के पन्नो को खोजना पड़ रहा है। इतिहस के पन्नो में पैठ कर गई जिले के मूल इतिहास को छोड़ कर उन एतिहासिक इमारतो एवं दस्तावेजो से पुछा जा रहा है कि बैतूल का इतिहास क्या है? बेतूल को कपास रहित क्षेत्र माना गया है लेकिन बैतूल में कपास की खेती होती रही है।
विदर्भ की आबोहवा से जुड़ा बैतूल कपास के लिए दूर – दूर तक जाना पहचाना रहा है। वैसे बेतूल मूलत: आफ्रिकी शब्द है जिसके अनुसार एक कुंवारी तपस्वी कन्या से है। जहां तक शब्दो के पीछे की कहानी को संदर्भ से जोड़ा जाए तो पता चलता है कि जिस कुंवारी तपस्वी कन्या का जिक्र किया जा रहा है दरअसल में वह भगवान सूर्य नारायण की पुत्री मां ताप्ती है जो कि इस क्षेत्र में चन्द्रवंशी राजा सवरण को वनो में विचरण करते हुए मिली थी। उसके शरीर से चमकता तेज को देख कर राजा संवरण मोहित हो गए थे। बाद में इसी कन्या से राजा संवरण का विवाह हुआ।
बैतूल जिले में ही सूर्यपुत्री ताप्ती के जन्म स्थान एवं जंगलो से विचरण के प्रमाण आज भी नदी के रूप में मौजूद है। बेतूल का दुसरा अर्थ कुछ लोगो ने बैतूल्हा शब्द से भी जोडऩे का प्रयास किया जो कि अफगानी शब्द से जुड़ा हुआ है। वैसे बैतूल का इतिहास अध्ंाकार मय बताते है जिसके पीछे उनकी आधी – अधुरी खोज एवं ज्ञान ही कहा जा सकता है। बैतूल जिले के इतिहास के बारे में जिले की आधी से ज्यादा आबादी को पता नहीं है कि जिले का सबंध किस युग- काल – समय से कब – कब रहा है। जिले में घटित मान्यताओं को लेकर कुछ जानकार एवं इतिहासकार तथा पुरात्तव विभाग के विशेषज्ञ अब इस बात पर भी चिंतन मनन करने में जुट गये है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का प्राचिन एवं पुरात्तव तथा पौराणिक इतिहास क्या है।
बैतूल जिले के काफी प्राचिन इतिहास से सूर्यवंश का रिश्ता भी किस तरह जुडा हुआ है। बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती नदी जिसे आदिगंगा – भद्रा – तापी – तपती – तापती सहित दर्जनो नामो से पुकारा जाता है उसका जन्म स्थान मुलतापी – मुलताई बैतूल जिले में ही स्थित है। जिले का प्राचिन इतिहास बताने के लिए हम कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहे है। जिले में रहने वाली जनजातियों का सबंध किसी न किसी युग एवं काल से मिलता -जुलता है। सतयुग के समय विदर्भ की राजकुमारी दमयंती के साथ विवाह के बाद उसके त्याग के बाद जंगलो में भटकने वाले राजा नल ने जिले के मासोद ग्राम के पास स्थित तालाब की मछली को भूनने का प्रयास किया था लेकिन मछली उछल कर तालाब में जा गिरी।
इस क्षेत्र में प्रचलित कथाओं में नल – दमयंती के संदर्भ में यह कहा जाता है कि ऊंचा खेडा पर पटटन गांव , मंगलराजा मोती – दमोती रानी बरूवा बामन कहे कहानी , हमसे कहती उनसे सुनती सोलह बोल की एक कहानी , सुनो महालक्ष्मी रानी , विदर्भ का यह क्षेत्र जिसे महाभारत में कीचकदरा जो वर्तमान में खिचलदरा कहलाता है इस क्षेत्र का राजा कीचक था जो कि विदर्भ के राजा विराट का साला था । कीचक का अस्तबल एवं मलयुद्ध अखाडा का नाम कीचकधरा जो वर्तमान में बैतूल एवं पडोसी राज्य महाराष्ट्र्र के अमरावती जिले के परतवाडा क्षेत्र से लगा हुआ जो वर्तमान में पर्यटक स्थल चिखलदरा कहलाता है।
राजा कीचक की कुल देवी वेराट देवी का स्थान बैतूल जिले के प्रभात पटट्न गांव में था जो प्राचिन में परपटटन गांव के रूप में जाना जाता था। महाभारत के पूर्व अज्ञातवास के दौरान में पांचो पाडंव राजा कीचक के राज्य में स्थित सालबर्डी की गुफाओं में भी रहे जो कि अभी भी मौजूद है। पांडव पुत्र जीवन संगनी पर बुरी नज़र रखने के कारण ही पांडव पुत्र भीम ने कीचक को मारा था। बैतूल जिले में त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने ही मां सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के किनारे शिवधाम बारहलिंग में बारह शिवलिंगो की स्थापना ताप्ती के तट पर पत्थरो पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से की थी जो अभी भी मौजूद है।
इस स्थान पर सीता स्नानागार भी मौजूद है जहां पर माता सीता ताप्ती के तट पर स्नान किया था। इस क्षेत्र में वनो में सीताफल पाये जाते है जिनका उल्लेख रामायण में भी है। रामायण की चौपाई में कहा गया है कि माता सीता पुछती है कि प्रभु अति प्रिय फल मोरा तब भगवान ने इसका नाम सीता जी के नाम पर सीताफल दिया था। कुरूवंश के संस्थापक राजा कुरू की माता ताप्ती का बैतूल जिले में जन्मस्थान के कई प्रमाण है जैसे नारद टेकडी , नारद कुण्ड , सूर्य कुण्ड , धर्मकुण्ड , पाप कुण्ड , शनिकुण्ड , सात कुण्ड बैतूल जिले में ताप्ती जन्मस्थली में मौजूद है।
बैतूल जिले में आज भी सबसे अधिक शिवलिंग तापती नदी के किनारे है जो कि इस बात के प्रमाण है कि रावण पुत्र मेघनाथ ने तापती के किनारे कठीन तपस्या की थी। यह क्षेत्र रावण के बलाशाली पुत्र मेघनाथ का राज्य का हिस्सा रहा है इसलिए यहां के मूल निवासी आज भी गांवो में मेघनाथ – रावण – कुंभकरण की पूजा करते है। ताप्ती नदी के किनारे देवलघाट नामक स्थान भी है जहां से देवता बीच नदी में स्थित सुरंग से स्वर्ग को प्रस्थान किये थे। इस जिले में चन्द्र पुत्री पूर्णा का भी जन्मस्थान पुष्पकरणी है जो कि भैसदेही के पास है।
बैतूल जिले का प्राचिन इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि सूर्य एवं चन्द्रवंश की दो देव कन्याओं का इस जिले में उदगम स्थान है तथा इस जिले से ही वे निकल कर भुसावल के पास मिलती है। बैतूल जिले में कई प्राचिन अवशेष भी है जिन्हे आज जरूरत है समझने एवं परखने की लेकिन आज यहां पर प्रमाण के नाम तलाश करने के लिए कोई भी इतिहासकार गांव और जंगल की खाक छानने को तैयार नहीं है। बैतूल जिले में सातबड़ के पास हाथीखुर्द के पास मिली शंखलीपी को लेकर आज तक कोई शोध या जांच करने को नहीं आया है। वैसे शंखलीपी के बारे में कहा जाता है कि यह ईसा से दो हजार पूर्व की बताई जाती है। बैतूल जिले के जंगलो में कई स्थानो पर मिली मूर्तियां प्रतीक चिन्हो में बैतूल जिले का इतिहास छुपा है लेकिन जानने के लिए जानकारो का अभाव बैतूल की पहचान को गर्त में ले जा रहा है।