ताप्तीचंल एवं पूर्णाचंल में दोनो पुण्य सलिलाओं के समग्र जल को संग्रहित करने एवं उसे लोगो की आस्था के अनुरूप तथा दोनो की पौराणिक पृष्ठभूमि को जन – जन तक पहुंचाने की दिशा में एक मील का पत्थर है। सूर्यपुत्री आदिगंगा कही जाने वाली पुण्य सलिला मां ताप्ती एवं चन्द्रपुत्री पूर्णा नदी, एक जल स्त्रोत, एक आस्था की प्रतिक , स्वस्थ , स्वच्छ , स्वछंद वातावरण , सुंदर और पवित्र स्थलो की सरंचना की दिशा में एक प्रयास है। इतिहास के पृष्ठो पर छपी कहानियों एवं इतिहास के अनुसार विश्व की अधिकांश संस्कृतियों का जन्म व विकास नदियों के किनारे हुआ है। ऐसे में सृष्टि के निमार्ण के साथ ही जीवन के संग जल के रूप में आई सूर्यपुत्री मां ताप्ती विश्व की उन अनमोल धरोहर में से एक है जिसका भूत -वर्तमान – भविष्य मानव सभ्यता से जुड़ा हुआ है।
भारत के देव – दानव – ऋ षियों – तपस्यिों की जप एवं तप के तप से तापी और तपती बनी ताप्ती ने उन असंख्य कंठो को तृप्त किया जिसके चलते हुए तृप्ति भी कहा गया। वह सूरत में तापी , जम्मू में तावी, आंध्र में प्राणहिता , मध्य बैतूल में ताप्ती कहलाई। आज के सतपुड़ा लेकिन पौराणिक श्रंगऋषि पर्वत श्रंखला से निकली पश्चिम मुखी ताप्ती ने अपने पूरे प्रवाह एवं बहाव क्षेत्र में निराकार ऊं का निमार्ण एक नहीं कई बार किया है। वह पूर्वमुखी कहलाई तो कभी सूरजमुखी और सूर्यमुखी कही जाने लगी। सूर्यपुत्री पुण्य सलिला मां ताप्ती की ही तरह उनकी एक मात्र संगी सहेली कही जाने वाली चन्द्रपुत्री पूर्णा ने सप्तऋषियों को चकमा देने के लिए गाय का रूप धारण कर वह पोखरनी प्राचिन राजा गय की राजधानी पुष्पकरिणी से निकलने के बाद सात बार मुड – मुड कर सप्तऋषियों को चकमा देकर वह गाय के दुग्ध के रूप में नदी की धार बह कर निकल गई।
भुसावल के पास दोनो पुण्य सलिलाओं ताप्ती एवं पूर्णा का मिलन हुआ। आमतौर पर ऐसा कहा जाता है कि पर्यावरण संतुलन के सूत्रों को ध्यान में रखकर समाज की नदियों, पहाडों, जंगलों व पशु-पक्षियों सहित पूरे संसार की ओर देखने की विशेष सह अस्तित्व की अवधारणा का विकास किया। उन्होंने पाषाण में भी जीवन देखने का मंत्र दिया। गंगा के धरती पर अवतरण के समय गंगा की जिद के चलते ताप्ती का महात्मय कम करने की मंशा ने आज तक ताप्ती को हमेशा नजर अदंाज किया है।
गंगा को धरती पर आने से पहले अपने महत्व की चिंता सताई लेकिन अब गंगावादियों के गंगा के कारण अपनी चलती दुकान के बंद हो जाने के डर ने ताप्ती की उपेक्षा की जिसके पीछे उन्हे यह डर सताने लगा कि गंगा तो कल और आज तथा परसो भी ताप्ती के महात्मय के सामने बौनी है। लोग गंगा को न भूल जाए इसलिए गंगा के किनारे रहने वालो ने सोची समझी साजिश के तहत गंगा को महिमा मंडित करने का ओछा प्रयास किया। जिस गंगा में सौ बार नहाने का पुण्य लाभ मां ताप्ती के नाम मात्र स्मरण से मिल जाता है उसके दर्शन या स्नान का पुण्य लाभ की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
गंगा के किनारे यदि मान भी ले कि छै ज्योतिलिंग बने हुए है लेकिन देश – दुनिया में मात्र ताप्ती के किनारे एक नहीं पूरे बारह ज्योतिलिंंग एक साथ बनवाए गए है वह भी बारहवे ज्योतिर्लिंग रामेश्वर की स्थापना के कई माह पूर्व ही बनवाए जा चुके थे। भगवान आशुतोष के बारह ज्योर्तिलिंगो के निमार्ण कार्य को भववान विश्वकर्मा ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के आग्रह पर किया था। यहां पर सपत्निक बारह ज्योर्तिलिंगों की पूजा – अर्चना करने के बाद स्वंय मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने अपने पूर्वजो एवं पितरो का तर्पण कार्य किया था।
राजा दशरथ को गया में फालगुनी नदी में श्राद्ध पर्व में तर्पण के पूर्व ही पुण्य सलिला मां ताप्ती में श्री राम – माता सीता – अनुज लक्ष्मण के द्वारा तर्पण करके श्रवण कुमार की हत्या एवं उसके माता – पिता के श्राप से मुक्ति दिलवाई गई थी। यही से राजा दशरथ स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान हुए थे। ताप्ती – पूर्णा एक समग्र एक पहल है। ताप्ती के महत्व एवं महात्मय को जन – जन तक पहुंचाने की दिशा में ताप्तीचंल के वरिष्ठ पत्रकार , लेखक , चिंतक , विचारक रामकिशोर पंवार एवं उसके साथियों के द्वारा जनसंवाद एवं जन ससंद की यह कोशिश है। ताप्ती – पूर्णा समग्र इन द्धय पुण्य सलिलाओं के सभी पक्षों पर संयुक्त प्रयास चाहता है।।
यह ताप्ती – पूर्णा,वर्धा, बेल,मोरंड, सापना,माचना,गागुंल,तवा,गंजाल, के सारे आयामों को एक स्थान पर समेटने की ओर आगे भी बढने की दिशा में एक प्रयास है जो यह चाहता है कि आप सभी सपरिवार, सकुटुम्ब इस कार्य में अपनी भागीदारी निश्चित करें जिससे प्रयत्न को सहयोग मिले व सूर्यसुता की सेवा भी हो सके। कलेक्टर श्री बी. चन्द्रशेखर ने कहा कि हमारा अतीत काफी समृद्ध रहा है। हमारी पुरातात्विक धरोहरों को खोजना एवं सहेजना काफी जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ी इससे कुछ सीख सकें।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथी बैतूल जिला कलैक्टर श्री चन्द्रशेखर ने पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय भोपाल द्वारा नर्मदा एवं ताप्ती का सांस्कृतिक इतिहास विषय पर आयोजित शोध संगोष्ठी में अपने विचार रखे। कलेक्टर ने अपने संबोधन में आगे कहा कि जिला मुख्यालय पर स्थित पुरातत्व संग्रहालय को उपलब्ध धरोहरों को बेहतर तरीके से सहेजने के प्रयास किये जाएंगे। संग्रहालय के लिये उचित स्थान भी तलाशा जाएगा। ताकि आम आदमी जिले की इस अमूल्य धरोहर से सुगमता से परिचित हो सके। संगोष्ठी में विधायक श्री चैतराम मानेकर एवं डॉ. राजेन्द्र देशमुख ने नर्मदा एवं ताप्ती नदी के महत्व पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
साथ ही जिला पुरातत्व संघ के सचिव डॉ. आरजी पाण्डेय ने जिले के पुरातात्विक महत्व पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता उज्जैन के डॉ. आरके अहिरवार ने की। ग्वालियर के डॉ. एसके द्विवेदी एवं भोपाल के श्री डीके माथुर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। संगोष्ठी में उज्जैन के डॉ. रामकुमार अहिरवार के अलावा श्री धर्मेन्द्र सिंह जोधा, श्री आशीष कुमार बिठौरे, डॉ. अनिता सोनी, डॉ. विजेता चौबे, श्री अमित सातनकर, सुश्री साधना ठाकुर, सुश्री शोभना जैन, डॉ. रमाकांत जोशी, डॉ. सुखदेव डोंगरे सहित अन्य शोधकर्ताओं ने नर्मदा एवं ताप्ती के सांस्कृतिक इतिहास पर अपने शोध प्रस्तुत किये। मंच संचालन डॉ. रमेश यादव जबलपुर ने किया। कार्यक्रम के संयोजक श्री मन्ना सिंह थे।