बैतूल। हमारे देश में सर्वसाधारण यह मान्यता है कि शुभ मुहूर्त पर किए गए कार्य सफल होते हैं। अत: कार्य करने हेतु मुहूर्त देखने का प्रचलन है। इसी संदर्भ में हमारे पूर्वाचार्यो ने साढ़े तीन विशेष मुहूर्त बताये हैं। जिन पर किए गए कार्य विशेष का पुण्य फ अक्षय होता है। वे मुहूर्त है चैत्र शुक्ल प्रतिपद, वैशाख शुक्ल, आश्विन शुक्ल, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलि प्रतिपदा आधा मुहूर्त। उक्त उद्गार अविनाश कमाविसदार ने बैतूल बाजार में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। उन्होने बताया कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष को तृतीय तिथि को अक्षय तृतीया आखतीज कहते हैं। नारद पुराण के अनुसार रोहिणी नक्षत्र होकर बुधवार अथवा सोमवार को अपने वाली अक्षय तृतीय दुर्लभ होती है। पूर्वान्ह व्यापिनी तृतीया पर मनुष्य ने शीतल जल से पवित्र सरोवर या तीर्थ स्थल पर स्नान करना चाहिए।
.यह मुहूर्त अपने पितरों के प्रतिश्रद्धा ज्ञापित करने के लिए हैं। इस दिन स्नान कर अपने पितरों के लिए पिंड रहित श्राद्ध किया जाता है। यव से विष्णु पूजन कर यव से ही होम करना चाहिए। यव का दान कर यव से तैयार सत्तू का दान कर स्वयं भी उसका सेवन करना चाहिए। सुवर्ण एवं अन्नदान के साथ उदक कुंभ यव गेंहू, यणक, सत्तू एवं आम का पन्हा तथा ग्रीष्म ऋतु में प्राप्त अन्न एवं फल दान करना चाहिए। इसी प्रकार इस अतिथि पर भगवान शिव का पूजन कर ठंडे जल से अभिषेक करने एवे उदक कुंभ दान करने से शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है। ऐसा शिव पुराण में बताया गया है। अक्षय तृतीया ही परशुराम जयंती है। वैशाख शुक्ल तृतीया पर पुर्नवसु नक्षत्र में सभी के प्रथम प्रहर में जब 6 ग्रह उ”ा स्थान में होकर मिथुन राशिगत राहू था तब मां रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का अवतार हुआ था। ऐसा हमारे विद्धान पुर्वाचार्यो का कथन है। आज अक्षय तृतीय के मूहुर्त को लेकर इतना भ्रामक प्रचार प्रसार हो चुका है कि किसे गलते किसे सही यह निर्णय लेना कठिन हो गया है।