बैतूल। प्राधिकरण अस्तित्व में उस समय आया जब आवेदक श्रमिक आदिवासी संगठन ने मप्र के उ”ा न्यायालय के 7 दिसम्बर 1912 के आदेश पर अपनी याचिका उ”ा न्यायालय में दायर की जिसमें मप्र रा’य अनावेदक था, मुद्दा था आदिवासियों पर बढ़ते हुए अत्याचार। मप्र में हरदा, बैतूल व खंडवा जिलों में जिला स्तरीय शिकायत निवारण प्राधिकरण का गठन 31 अगस्त 2012 तक करने के निर्देश दिए गए। प्राधिकरण को कुछ स्थूल उत्तरदायित्व सौंपे गए कि यह प्राधिकरण यदि किसी शासकीय अधिकारी या व्यक्ति (पुलिस सहित) के द्वारा शिकायतकर्ता पर मिथ्या आरोप लगाए या प्राथमिकी सूचना दर्ज करने से वे इंकार करें या अपने अधिकारों का दुरूपयोग करें तब प्राधिकरण तत्संबंधी सूचना प्राप्त करेगा जो एक वर्ष पूर्व घटित हुई है।
ऐसी शिकायत मिलने पर प्राधिकरण उस सूचना का गहन परीक्षण करगा और यदि वह सत्य पाई गई तो उसे उचित कार्यवाही हेतु अपनी उचित अनुशंसा के साथ जिला न्यायाधीश, रा’य विधिक सेवा प्राधिकरण व मुख्य सचिव को प्रेषित करेगा ताकि ऐसी अनुशंसा को क्रियाङ्क्षवत किया जा सके। प्राधिकरण के कार्य निष्पादन हेतु स्थान आदि की व्यवस्था न्यायाधीश जिला विधिक सहायता अधिकारी या रा’य शासन द्वारा की गई है। जिला न्यायाधीश की ओर से फिलहाल कोर्ट परिसर में उपभोक्ता फोरम के निकट विधिक सहायता कार्यालय में एक कक्ष की व्यवस्था की गई है। शिकायत कर्ता यहां अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
प्राधिकरण के सदस्य दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक उपस्थित रहते हैं। प्राधिकरण के अध्यक्ष एएस नायडू व मीरा एंथोनी, इंदरचंद जैन, एसआर महाते, प्रो केके चौबे सदस्य हैं। आवश्यक जानकारी के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता है। विधिक सहायता सेवा प्राधिकरण के अधिनियम 1987 के अनुसार आदिवासी समुदाय के शिकायतकर्ता नि:शुल्क सहायता प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं। प्राधिकरण को आवेदन देने के लिए सूचना पोस्ट, टेलीफोन, मोबाईल अथवा उचित शासकीय या अर्धशासकीय संगठन या ग्राम स्तरीय किसी भी कर्मचारी के माध्यम से दी जा सकती है।