बैतूल25फरवरी।।वामनपोटे।। कुपोषण के कुचक्र को जड़-मूल से समाप्त करने के लिये सबसे पहले सरकारी महकमे को किशोरी बालिकाओं में खून की कमी अर्थात हिमोग्लोबीन की कमी को दूर करने के साथ बालिकाओं को भरपूर पोषण आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। इसके अलावा बाल विवाह पर भी पूरी तरह अंकुश लगाने की जरूरत है। यदि किशोरी बालिकाओं को सभी मापदण्डों पर स्वस्थ रखने की गारन्टी हो जाये तो कुपोषण की समस्या को काफी हद तक आसानी से समाप्त किया जा सकता है।
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में 10वर्ष से 18 वर्ष कि ज्यादातर किशोरी बालिकायें खून की कमी यानि एनीमिक हैं। यदि ऐसी किशोरी बालिकाओं का समय पर उचित ईलाज नहीं किया गया तो विवाहोपरांत उसकी संतान के कम वजन और कुपोषित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिये कुपोषण के चक्र में किशोरी बालिका महत्वपूर्ण कड़ी है जिसे जागरूक करना महिला बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकता होनी चाहिये।
महिला एवं बालविकास विभाग की एक पर्यवेक्षक ने नाम नही छापने की शर्त पर कहा कि कुपोषण की शुरूआत किशोरी बालिका से ही हो जाती है इसलिये किशोरी बालिका के स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिये ।उन्होंने कहा की आंगनवाड़ी केंद्रों पर बनाये गये उदिता केंद्र भी कागजी साबित हो रहे है।
इधर आंगनवाड़ी केंद्र जहां पर्याप्त स्थान है, वहां सुरजना के पेड़ रोपे जाने के फरमान और नवाचार के आदेश भी हवा हवाई हो गए और जिले में कुपोषण बढ़ता ही जा रहा हैं ।सुरजना की नई प्रजाति के पेड़ में छह माह में ही फलियां लगना शुरू हो जाती हैं। सुरजना की पत्तियों और फलियों से व्यंजन बनाने की विधि का भी खूब बखान किया पर यह भी सिर्फ दिखावा ही साबित हुआ।
पोषण आहार की गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में
आंगनवाड़ी केंद्रों से किशोरी बालिकाओ को दिया जाने वाला पोषण आहार या तो दिया ही नही जाता और कभी का बार दे भी दिया तो उसकी गुणवत्ता पर भी अब सवाल खड़े हो रहे हैं।यदि पोषण आहार दिया जा रहा है तो किशोरी बालिकाए एनिमिक क्यों है।
किशोरी बालिका प्रशिक्षण भी कागजो तक सीमित
बैतूल जिले की 2346 केंद्रों पर 75000 सेअधिक किशोरी बालिकाओं को पोषण आहार देना महिला बाल विकास बताता है । इसके बावजूद भी जिले की ज्यादातर किशोरी बालिकाए एनिमिक है और हीमोग्लोबिन की कमी से जूझ रही है।वही आश्रम और छात्रवास में रहने वाली बालिकाए भी हीमोग्लोबिन की कमी से जूझ रही है। आंगनवाड़ी केंद्र की दो किशोरी बालिकाओं को प्रशिक्षित कर गांव की अन्य किशोरी बालिकाओं को भी योजना की जानकारी देने के उद्देश्य से शुरू हुई इस योजना के नाम पर जिले में करोड़ो रूपये खर्च हुए पर नतीजा कुपोषण कम होने के बजाय बड़ा ही हैं।
किशोरावस्था नारी के जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवस्था होती है। इस अवस्था में वह यौवन की दहलीज पर होती है। बाल्यावस्था तथा यौवन के बीच की अवस्था होने के कारण किशोरावस्था नारी के मानसिक,भावनात्मक तथा मनोवैज्ञानिक विकास की दृष्टि से अत्यंत परिवर्तनशील होती है। यदि मानव संसाधन विकास के उद्देश्य से चलाए जाने वाले विकासात्मक कार्यक्रमों में किशोरियों को शामिल न किया जाए तो सर्वंगीण बाल विकास का दृष्टिकोण उपेक्षित रह जाता है और कुपोषण की विभागीय लड़ाई भी कागजी घोड़े ही साबित हो रही है जिसका उदाहरण सीताकामथ की प्रतीक्षा के रूप में सामने आया है।