बैतूल। सन् 1977 में अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद द्वारा मणिपुर रा’य के मोयरंग नगर में शासन से तिरंगा यात्रा की मांग की गई, तब से परिस्थितियां अनुकूल होने पर यह यात्रा की जाती है। जिसमें पूरे देश में से केवल 50 व्यक्तियों के लिए ही मान्यता दी जाती है। इस वर्ष यह तिरंगा यात्रा ब्रिग्रडियर आर. विनायक, व्ही.एसएम के नेतृत्व में समूचे देश के 43 सदस्यों जिसमें 13 महिलाएं भी शामिल हुई। जिसमें मप्र के बैतूल जिले के पूर्व सैनिक जिला संयोजक अनिल वर्मा तथा उनकी धर्मपत्नि प्रतिमा वर्मा भी उनके साथ सम्मिलित हुई। इस मौके पर पूर्व अनिल वर्मा यहां के इतिहास देते हुए कहा कि 14 अप्रैल 1944 को मणिपुर रा’य के मोयरंग नगर में सबसे पहली बार आजादी का तिरंगा फहराया गया। यहां के लोग आज भी 14 अप्रैल को ही आजादी का दिन मानते हैं और तिरंगा फहराकर उत्सव मनाते हैं। जब तुम खड़े हो तो चट्टान के समान दृढ़ता से खड़े हो, जब आगे बढ़ो तो स्टीम रोलर के समान आगे बढ़ो मैं चाहता हूं कि तुम आजादी के दीवाने हो जाओ, सब न्यौछावर कर, बनो सब फकीर, कष्ट भूख और मौत के सिवाए मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है। ये आदर्शवादी शब्द नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने अपनी आजाद हिन्द सेना के लिए उस समय कहे थे जब उनकी ये सेना बर्मा के दुर्लभ रास्तों पर चलकर ब्रिटिश सेना को परास्त करते हुए मणिपुर रा’य में प्रवेश करने जा रही थी। इनके आदर्शवादी शब्दों ने सेना के मनोबल में नए प्राण फंूक दिए।
11 दिन चले इस युद्ध में आजाद हिन्द सेना को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अस्लाह और रसद की कमी से सेना को जंगल में शरण लेनी पड़ी। यहां पर सेना के तेज तूफान और भारी बारिश के चलते कई सैनिक बीमारी से मारे गए तथा कई कैद कर लिए गए। यही नहीं इस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे कर्नल शौकत मलिक और सरदारे जंग को गिरफ्तार कर बीच चौराहे पर गोली मार दी गई। इनकी कुर्बानी ऐसा रंग लाई की जनता में तूफान आ गया। सभी लोग आक्रोश से भर उठे और जय हिन्द और दिल्ली चलो के नारे से आसमान बुलंद कर दिया। श्री वर्मा ने बताया कि यह यात्रा दीमापुर से आर्मी की सुरक्षा के साथ शुरू होती है और नागालैंड रा’य के रास्ते कोहिमा होते हुए जहां पर की द्वितीय विश्वयुद्ध में आजाद हिन्द फौज के सैनिकों का शहीद स्मारक बना हुआ है। वहां श्रद्धांजली देने के पश्चात रा’य के रा’यपाल द्वारा स्वागत समारोह तथा भोज का इंतजाम किया जाता है। फिर यह यात्रा जुखामा होते हुए मणिपुर पहुंचती है। वहां पर 14 तारीख को तिरंगा समारोह के आयोजन में अपनी भागीदारी निभाते हुए वापस होती है।