मशहूर तांत्रिक चंद्रास्वामी का निधन हो गया है। वो नरसिम्हा राव के अध्यात्मिक गुरू माने जाते रहे हैं। उनक असली नाम नेमीचंद था। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। तांत्रिक चंद्रास्वामी के भक्तों में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रही मार्ग्रेट थैचर तक का नाम शामिल है। चंद्रास्वामी के लिए नरसिम्हा राव ने दिल्ली में एक आश्रम बनवाया था। नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए उनका आश्रम पॉवर सेंटर के तौर पर जाना जाता था। चंद्रास्वामी कई विवादों से भी जुड़े रहे हैं। लंदन के बिजनेसमैन से एक लाख डॉलर की धोखाधड़ी के मामले में 1996 में उनको जेल भी जाना पड़ा। उनके ऊपर विदेशी मुद्रा उल्लंघन यानी फेमा के कई मामले भी चले थे। एक स्वभाविक विचार उत्पन्न होता है कि तंत्र से दूसरों के भाग्य पलटने वाला स्वयं प्रसिद्ध के शिखर पर आकर गुमनामी में ही मौत के मुंह में चला गया। भारत में ही नहीं अंधविश्वास पूरे दुनिया में अलग-अलग रूपों में काबिज है।
यह जरूरी नहीं है कि अनपढ़ व्यक्ति इसकी चपेट में आएं हैं पढ़े-लिखे लोग भी इस गटर डूबें हैं। यह ‘ओपन स्क्रिेटÓ है कि सचिवालय में कालचक्र के बिना कई आईएएस अधिकारी कदम नहीं रखते। खिलाडिय़ों और फिल्मी कलाकारों के अपने अलग-अलग मंहगे टोटकें हैं। मध्यम वर्ग के तांत्रिक बाबा उनकी आर्थिक हैसियत के मुताबित निंबु उतारकर नदी में सिरा दो, पीपल के पेड़ पर कीलें गाड़ दो जैसे सस्ते फार्मुले बतातें हैं क्योंकि लोग यथार्थ को गल्प और गल्प को यथार्थ मान बैठें हैं। भारत के हर शहर और कस्बे में लोकल चन्द्रास्वामी विद्यमान हैं। कुछ विजिटर बाबा भी हैं जो लॉज में रूककर, पैम्पलेट में अपना विज्ञापन करतें हैं कि उन्हें सीधे मां दुर्गा आदि का डायरेक्ट आर्शीवाद प्राप्त है और दावा करते हैं कि 15-20 दिनों में नि:संतान, वशीकरण, अदालती प्रकरण आदि में गांरटी के साथ सफलता पाएं। किसी भी बात को बिना सोचे समझे, बिना किसी आधार के चरम सीमा के परे जाकर करना और मानना अंधविश्वास है। कई बार ईश्वर की भक्ति में इस कदर खो जाते हैं कि भगवान के नाम पर कुछ भी करवा लो, यह भगवान के अस्तित्व पर आस्था नहीं अंधविश्वास है।
वैज्ञानिक और साहित्यकार सच को देख पाता है, बस उसे वर्णित अलग तरीके से किया जाता है। कुछ चीजें हमारे अवचेतन में धंस गई है, जैसे मां ने कहा बिल्ली रास्ता काटे तो रूक जाओ, इस आदेश को आखिरी सांस तक निभाया जाता है। यूरोप भी अछूता नहीं है, वहां कई देशों में 13वां माला बेहद अशुभ माना जाता है, जिसके खरीददार तक नहीं मिलतें हैं। भारत में तो तंत्र साधना के लिए बाकायदा ख्यातिनाम मंदिर हैं। ओघड़ तंत्र पूरी दुनिया को अपनी ओर खिंचता है। यह भी सत्य है कि एक समय तंत्र विद्या का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है। अब इनके ऐसे कितने विशेषज्ञ हैं कहना मुश्किल है। तंात्रिकों की शरण में वही लोग जाते हैं जो कर्म, भाग्य और ईश्वर पर भरोसा नहीं रखते, क्योंकि यह भी सत्य है कि भूत उन्ही को दिखता है जो भूत को मानते हैं। सवाल यह है कि क्या तंत्र से किसी का अहित किया जा सकता है? या भाग्य बदला जा सकता है? तो फिर कर्म का स्थान कहां है? जिस कर्म की व्याख्या बाकायदा हमारे ग्रंथों में उल्लेखित है। चन्द्रास्वामी भले ही न रहें, टोने-टोटके हमेशा हमारे अवचेतन में रहेंगे।