ओलिंपिक से कुश्ती को हटाने के प्रस्ताव पर पहलवानों ने जताया रोष
बैतूल। जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तब से मनुष्य का स्वभाविक गुण जो संस्कार के नाम से जाना, पाया जाता है। मनुष्य में आदिकाल से ही यह मल्लयुद्ध (कुश्ती) का गुण प्रधान रहा है। जिससे मनुष्य स्वस्थ्य व दीर्घआयु प्राप्त कर धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष को प्राप्त करे। कुश्ती प्रतियोगिता से समाज में मानव के स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य शुद्ध व सत्य वैचारिक प्रवृत्ति विद्यमान रहती है। इसलिए इस संस्कार का अधिक महत्व है। इससे व्यक्ति समाज व देश का उत्थान है। पर ऐसा लगता है कि साहित्य, संस्कार व सहचारिता के साथ-साथ वेश-भूषा, भाषा व भारत की आर्य संस्कृति को क्षति पहुंचाने के लिए कुश्ती को ओलिंपिक से हटाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। उक्त उद्गार अंतराष्ट्रीय ओलिंपिक संघ की कार्यकारी बोर्ड ने 2020 के ओलिंपिक में कुश्ती को हटाने की सिफारिश की है जिसके विरोध में जय हनुमान व्यायाम शाला बैतूल के उस्ताद गुरूजी विजय आर्य स्नेही द्वारा व्यक्त किये गये। श्री आर्य ने कहा की हमारी व्यायाम शाला आईओसी के इस प्रस्ताव की घोर निंदा करता है और भारतीय कुश्ती संघ से मांग करता है कि अगामी ओलिंपिक में कुश्ती को शामिल किये जाने के पुरजोर प्रयास करे। श्री आर्य ने कहा कि कुश्ती को हटाया जाता है तो मानवीय आंदोलन किया जाएगा। आवश्यक है कि मानव समाज में शारीरिक,सामाजिक, धार्मिक व राष्ट्रीय उत्थान के साथ-साथ मानवीय क्षति न पहुंचे। इस तारतम्य में अपने विचार व्यक्त करते हुए पूर्व प्रदेश चैम्पियन जय हनुमान व्यायाम शाला बैतूल के संचालक विनोद बुंदेले ने भी चेतावनी दी है की यदि कुश्ती को हटाया जाता है तो इस फैसले का हर स्तर पर विरोध किया जाएगा।