सुलगे स्नेह के दीप, शुभ संदेश लाया है,
विजयदीप, भावनाओं को जाग्रत करने आया है।
अज्ञान अंधकार को नष्ट कर,
सत्यज्ञान के प्रकाश को जगमगाने आया है।।
ईष्र्या, द्वेष, लोभ-लालय, भेदभाव को दूर कर,
जिससे बढ़े, देश का गौरव, विचार लाया है।
मातृभूमि के बलिवीरों को, दैदीप्तमान संदेश लाया है,
लाज रखने ‘योतिर्मय पुष्पाहार बन आया है।।
बढ़े राष्ट्र में सुख संपदा, वैभवशाली संदेश लाया है,
स्नेह के दीप, झिलमिलाते, चमकीले धरा अंबर छाया है।
वसुंधरा सुशोभित दीप कतारों से,
शांति प्रदायन मन मधुकर स्नेही-अमृत-अंबर का।
सुस”िात बना है दीपपर्व,
विजयदीप लिए ऐश्वर्य दर्शन का।।
सब मिलकर जगमगाए, दीप आरती।
स्नेही अवनी-अंबर में गूंजे जय भारत जय भारती
रचियता :- विजय आर्य ‘स्नेहीÓ