महेश उर्फ उर्फ मेचा दादा नहीं रहा, कुछ अजीब सी स्मृतियां मस्तिष्क में दस्तक देने लगी। हालांकी मेचा दादा से मेरा व्यक्तिगत कोई बहुत सरोकार नहीं था, हां नब्बे के दशक में अपने सहपाठियों पर धाक जमाने के लिए मैं ऐसा प्रपंच करता की मेचा दादा मेरे करीब है कालांतर में मुझे पता चला की और भी लोग ऐसी बातें फैलाते थे। शायद कारण यह हो की उस वक्त मेचा दादा मेरे जैसे टीन एजर के लिए फेन्टीसे से कम नहीं था। नब्बे के दशक में मेचा खौफ का पर्याय बन गया था, उसकी तूती बोलती थी। मेचा की जिंदगी के उतार-चढ़ाव ने बताया कि हर चीज के पैमाने बदल रहें हैं फिर वह ‘खौफ की दुकानÓ ही क्यों न हो। उस दौर में जिगर से साम्र’य स्थापित किए जाते थे। आज दो इंच के कलेजे वाले लोग बाकायदा शूटर हायर कर लेते हैं। अब तकनीक और मानव के बीच द्वंद का दौर है। नब्बे के दशक में अपनी लड़ाई स्वयं लडऩी पड़ती थी, हां गैंग जरूर होती थी।
दो तीन समारोह में मैने देखा मेचा के प्रवेश के पूर्व उसके चार-पांच प्यादे आकर स्थल निरीक्षण करते थे और पता नहीं कौन सा और कैसा सिंग्नल देते थे (उस दौर में मोबाईल नहीं थी) की मेचा दादा प्रकट हो जाता था, अपनी चिर परिचित वेशभूषा में। मेचा दादा हमेशा एक्शन कंपनी के जूते, वी शेप बैगी और यामाहा की बाईक चलाता था, ये उसका हस्ताक्षरित व्यक्तित्व था। मेचा दादा शायद उस समय बैतूल का दाउद इब्राहिम था, बस दाउद पैसा प्रबंधन का भी ज्ञाता था और मेचा इस विद्या से अनभिज्ञ रहा। पैसे का मोल शायद उसे अंतिम सांस लेते समय पता चल गया होगा। मेचा पर कभी-कभी रॉबिन हुड हावी होता था तो कभी धार्मिकता (जिसमें वो देवी जी स्थापित करता) उसका स्वभाव अपरिभाषित था जिसमें वो अपनी ही गैंग के गुर्गो को पीट देता था। जिस कु्ररता से उसने सिंहासन गढ़ा उसी कु्ररता से मौत ने उसे लील लिया गोया की नाव पानी में कभी पानी नाव में यही जीवन दर्शन है।
अब मेरा कॉलेज पूर्ण होने पर था और सोचने -समझने का तरीका भी बदल गया था, एक दिन मैने देखा कुछ लोग मेचा दादा को पीट रहे थे और मेचा दादा रहम के हाथ जो रहा था, मुझे मेरी आंखो पर विश्वास नहीं हुआ कि जो बेदर्दी के साथ अपने दुशमनों को मारता था आज वो इतनी नाकाबिल हो चुका है। नब्बे के दशक में मेचा दादा थोड़े से आवारा फितरत वालों के लिए रोल मॉडल था, वहीं पढऩे-लिखने वाले ब”ो उसे अंत:मन से नापसंद करते थे, याने यह तय था की मेचा दादा विचार धारा को स्वीकार की जाती थी या अस्वीकार इसे उस दौर में कोई नजर अंदाज नहीं कर पाया।