बैतूल। मप्र शासन उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार स्वामी विवेकानंद जन्म शताब्दी वर्ष के चलते दिन सोमवार स्थानीय जेएच कॉलेज में प्रात:सूर्य नमस्कार किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ सुभाष लव्हाले ने बताया कि शासन के द्वारा 25 जनवरी 2007 में पहली बार सामूहिक रूप से एक संकेत पर स्कूल, महाविद्यालय एवं संस्थाओं में सूर्य नमस्कार हुआ था। प्रदेश में 50 लाख लोगों ने एक साथ सूर्य नमस्कार किया था। सूर्य नमस्कार तन,मन एवं वाणी से की गई सूर्य उपसना,इसमें सूर्य किरणों से विटामिन डी की प्राप्ति होती है। सूर्य नमस्कार शरीर के सभी जोड़ों व मांसपेसियों को ढीला करने व आंतरिक अंगों को मालिश करने का एक सरल व प्रभावशाली अभ्यास है। सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना है। सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में 12 स्थितियों को क्रम में दोहराया जाता है। सूर्य नमस्कार नामक यह व्यायाम 7 आसनों का समुच्चय है। राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी डॉ जीपी साहू द्वारा सूर्य नमस्कार की मुद्राऐं एवं मंत्र व प्रत्येक मुद्रा से होने वाले लाभ के विषय में बतलाया गया।
क्या लाभ पहुंचाती है सूर्य नमस्कार की मुद्राऐं
(1)प्रार्थना की मुद्रा-
मंत्र – ओम मित्राय नम:- व्यायाम की तैयारी के रूप एकाग्रता एवं शांत अवस्था में लाता है।
(2)हस्तउत्तानासन-
मंत्र- ओम रवये नम:-उदर की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है। पाचन तंत्र को दुरूस्त करता है। फेफड़े तंदरूस्त होते हैं।
(3) पादहस्तासन-
मंत्र- ओम सूर्याय नम: – पेट व आमाशय के दोषों को रोकता है। कब्ज को दूर करने में सहायक एवं रीढ़ को लचीला बनाता है।
(4)अश्व संचालनाषन –
मंत्र- ओम भानवे नम: – उदर के अंगों की मालिश कर उसकी कार्यप्रणाली को सुधारता है। पैरों की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।
(5) पर्वतासन-
मंत्र- ओम खगाय नम:-भुजा व पैरों को शक्ति प्रदान करता है। रक्त का प्रवाह सिरों भाग में तिव्रता होने से मस्तिक को क्रियाशील बनाता है।
(6) अष्टांग नमस्कार –
मंत्र -ओम पूष्णे नम:- पैरो व भुजाओं की मांस पेसिंयों शक्ति प्रदान करता है सीने को विकसित करता है।
(7) भुजंगासन –
मंत्र- ओम हिरण्यगर्भाय नम:- यह अमाशय के अंगों में जमें रक्त को हटाकर शुद्ध रक्त का संचार करता है। उदर रोगों को दूर करता है।
(8) पर्वतासन-
मंत्र- ओम मरीचये नम:- ये भुजा व पैरों की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। रीढ़ को लचीला बनाता है। मस्तिक को क्रियाशील बनाता है।
(9) अश्व संचालनासन
मंत्र- ओम आदित्याय नम- उदर के अंगों की मालिश होती है। कार्यप्रणाली में सुधार पैरों की मांशपेशियों को शक्ति मिलती है।
(10) पाद हस्तासन-
मंत्र-ओम सवित्रे नम:- पेट व आमाशय के दोषों को दूर करता है। कब्ज को दूर करने में सहायक है। रीढ को लचीला बनाता है।
(11) हस्तउत्तानासन-
मंत्र- ओम अर्काय नम:- पेट की अतिरिक्त चर्बी को हटाता है। पाचन को सुधारता है। फेफड़े पुष्ट होते है। भुजा, कंधो का व्यायाम होता है।
(12) प्रार्थना की मुद्रा-
मंत्र- ओम भास्कराय नम:-
पुन: एकाग्र एवं शांत अवस्था में लाता है।
कार्यक्रम का संचालन क्रिड़ा अधिकारी श्री झारिया एवं पुष्पारानी आर्य द्वारा किया गया। सूर्य नमस्कार में महाविद्यालय के डॉ के मगरदे, प्रो दाबाड़े, प्रो मालवीय, प्रो ज्योति शर्मा, प्रो प्रगति डोंगरे, डॉ धमेन्द्र कुमार, प्रो राने, डॉ पल्लवी दुबे, डॉ मीना डोनीवाल, डॉ ममता राजपूत, प्रो चौहान, प्रो पाटिल, प्रो लेले, प्रो माथनकर, एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राऐं उपस्थित थे।