बैतूल। सर्वप्रथम भागवत कथा परिक्षित राजा जिसे सातवें दिन तक्षक नाग द्वारा काटे जाने से मृत्यु का श्राप मिला। जिस कारण सुकदेव जी ने भागवत कथा सुनाई, सर्प को काल भी कहते हैं और काल का अर्थ समय होता है। परिक्षित अर्थ परिक्षार्थी होता है, हम सभी परिक्षार्थी है। ईश्वर सदैव हमारी परीक्षा लेते हैं। उक्त उद्गार पंडित सुखदेव शर्मा ने नाग मंदिर के सामने, सरोज भवन, मालवीय वार्ड (खंजनपुर) में भागवत कथा के तीसरे दिन व्यक्त किए। पंडित शर्मा ने कहा कि जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसके पास संासे होती है परन्तु नाम नहीं होता है मरता है तो नाम होता है परन्तु सांसे नहीं होती है। सांसे और नाम के बीच की यात्रा को जीवन कहते हैं। उन्होने कहा मनुष्य के कपड़े साफ हो या न हों मन अवश्य स्व’छ होना चाहिए। आयोजक मनमोहन मालवीय व राजेश मालवीय ने सभी से कथा लाभ लेने की अपील की है।