विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर बैतूल में स्व.सुरेश जोसफ स्मृति नाट्य महोसव का आयोजन बैतूल की नाट्य संस्था नीरज रंग मण्डल द्वारा किया गया। इस आयोजन में तीन नाटको का मंचन किया गया जिसमें नीरज रंग मण्डल बैतूल द्वारा नाटक अश्वथामा का अर्ध सत्य लेखक धर्मवीर भारती, सतपुड़ा वैली द्वारा नाटक जलचक्कर दोनो नाटक का निर्देशन रंगकर्मी नेतराम रावत द्वारा किया गया और छिंदवाड़ा की नाट्यसंस्था ज्ञान गंगा द्वारा नाटक ‘तितलीÓ की प्रस्तुति दी गई। नेताराम के नेतृत्व में उनके साथी कलाकारों का यह भागीरथी प्रयास था।
उम्मीद है कि बैतूल के युवा नाट्य कलाकारों ने तितली से काफी कुछ सीखा होगा की नाट्य को कैसे बहाव दिया जाता है और स्क्रीप्ट को कैसे गरदन से पकड़ा जाता है। टीवी में पात्र अपने कद से छोटे और रजतपट पर बड़े दिखाई देते हैं, नाटक में एक खासियत होती है किरदार जस के तस नजर आता है। संवाद ‘यादा लाउड हुए तो दर्शकों को कोफ्त होने लगती है और रिटेक के कोई अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसे में रंगमंच एक चुनौती भी होता है क्योंकि फिसले तो उठने के चांस क्षीण हो जाते हैं। कॉफी के बीच को रोस्ट करने के बाद महीन पीस गया तो कड़ु हो जाता है और मोटा रह गया तो स्वाद कमतर हो जाता है गोया की नाटक को भी इसी सटीकता की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। छिंदवाड़ा की नाट्यसंस्था ज्ञान गंगा द्वारा नाटक ‘तितलीÓ घरेलू यौन हिंसा पर आधारित है। यहां जानकारी दे दें की इस तितली का महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की कृति ‘तितलीÓ से कोई सरोकार नहीं है। इस नाटक के लेखक पंकज सोनी, निर्देशक सचिन वर्मा है। तितली की कहानी कमसिन विम्मी के इर्दगिर्द घूमती है जिस पर चरित्रहीन होने का तमगा लग चुका है जिसका फायदा उसके अपने ही सगे-संबधी ही उठाना चाहते हैं। विम्मी का आश्रय उनके एक परिचित प्रोफेसर के परिवार में मिलता है। प्रोफेसर साईक्लोजी का अध्यापन कराते है, परन्तु पुरूष मनोवृत्ति आखिरकार उन पर भी हावी हो ही जाती है और वे विम्मी के प्रति आशक्त हो जाते हैं। नाटक के दौरान नायक अपनी पत्नी से कहता है कि नेचर और सिग्नेचर पूरी जिंदगी नहीं बदलते, इसकी जैसी लड़कियां तितली की तरह होती है। संस्कारों का श्वांग करने वाले प्रोफेसर साहब भी आखिरकार चरित्रहीनता को अलग तरीके से परिभाषित करते हुए इसे न्यायोचित ठहरा देते हैं। तितली में पुरूषों की लंपटता को प्रदर्शित किया गया है। इस नाटक की स्क्रिप्ट में दर्शक स्वयं को रिलेट कर सकता है। आज कल स्कूलों में गुड टच और बेड टच सिखाया जा रहा है। बागबान से बगीचे को बचाने की कोई युक्ति काम नहीं आती है। एक अनाम शायर के शेर की दो पंक्तियों पर गौर करें कि ‘तुम्हारे घर में दरवाजा है लेकिन तुम्हे खतरे का अंदाजा नहीं है हमें खतरे का अंदाजा है लेकिन हमारे में घर दरवाजा नहीं हैÓ इस नाटक की स्क्रिप्ट की सबसे विशेषता इसका ‘रिवर्स स्वींगÓ है, जिसमें विम्मी को दर्शक अंत तक खलनायिका समझते रहते हैं वह अंत में अचानक वह नायिका की भूमिका में तब्दील हो जाती है और उसके आस-पास के तथाकथित चरित्रवान पात्र जड़वहीन दिखने लगते हैं। विडम्बना यह है कि विम्मी जैसे शोषित ब”ो अपनों को पहचान नहीं पाते हैं और दुश्मनों को परिभाषित नहीं कर पाते हैं। चरित्रहीन शिक्षा, मानवता रहित विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार खतरनाक होता है, और आज ऐसी ही सामग्री समाज की लिजलिजी आत्मा में ठंास कर पैकिंग की जा रही है। मुख्य किरदार पंकज सोनी (प्रोफेसर) और अपूर्वा डोंगरवाल (पूनम) ने एकदम ‘न’युरलÓ अभिनय किया। पंकज सोनी का किरदार ग्रे शेड लिए हुए था जिसमें से भी वे हास्य उत्पन्न करने में बखूबी सक्षम रहे। विम्मी की भूमिका में स्वाति चौरसिया सामान्य रही। रोहित रूसिया सूत्रधार की तरह पाश्र्व गीत दे रहे थे। सूत्रधार की आवाज में कब दर्द होना चाहिए और कब माधूयर्ता, इसकी रोहित में समझ दिखी। सूत्रधार के हिस्से को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है। श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित ‘भारत एक खोजÓ में ओमपूरी इसकी पुष्टी कर चुके हैं। ओमपुरी ने ‘भारत एक खोजÓ में अभिनय भी किया था और सूत्रधार भी रहे थे। नाटक तितली में विम्मी स्वयं रचित कविता सुनाती है कि मेरी जिंदगी पर सिर्फ मेरा हक है, सवाल उठता है कि क्या तितली की जिंदगी पर उसका हक है?