बैतूल। सियासत में रूतबेदार,धन-धान्य से संपन्न, आध्यात्मिक गुरू और दुनिया को संघर्ष की शिक्षा देने वाले भय्यू महाराज तनाव नहीं झेल पाए और आत्महत्या कर ली या यो कहें स्वयं के हाथों खुद की भ्रण हत्या कर बैठे। बाबाओं की दुनिया बहुत अजीबो-गरीब है यहां चमकीली कालीनों के नीचें कई रहस्य पलते हैं। आजकल बाबाओं की मानिंद ही सोशल मीडिया पर भी कॉपी-पेस्ट बाबा सुविचार केे रूप में बिना चखे भारी-भरकम व्यंजन परोस रहें हैं। ये अनमोल वचन सभी पर लागू हो ही नहीं सकते हैं क्योकि जिंदगी फार्मुलों पर नहीं चलती है। हर व्यक्ति अलग-अलग परिस्थतियों में जीता है और सभी के लिए अलग-अलग फार्मूलें निर्धारित हैं। आम आदमी अपनी संघर्षगाथा स्वयं रचता है और विपरीत परिस्थतियों का मुकाबला करते हुए जिंदगी की जंग जीतता-हारता है।
आम आदमी के पास सबसे अच्छा विकल्प यह है कि वह अपने किसी एक करीबी से अपने दिल की बात कह सकता है, जो उसे सही सलाह देता है। क्योंकि परेशानी में काबिल इंसान की बुद्धि भी कुंद हो जाती है और वह दुविधा में होता है, ऐसे में करीबी लोग ही उसके मार्गदर्शक होते हैं। गोया की मरने के बाद तो चार कंधे किसी को भी मिल ही जाते हैं जीते जी अपना दुखड़ा रोने के लिए एक कंधा जरूरी है। शायद भय्यू जी महाराज के साथ यही विडंबना रही होगी की वे कैसे किसी की सलाह लें क्योंकि वे खुद अध्यात्म के चोले में लिपटे हुए थे। मशविरा लेते तो दिल हल्का हो जाता और विषम स्थिति से बाहर आ जाते, परन्तु कई दफा आडम्बर का कवच आत्मा पर हावी हो जाता है। आम इंसान जिसे बच्चे की शिक्षा, बीमारी, व्यापार,खेती आदि के साथ दो -चार होना पड़ता है उन्हें एसी में बैठने वाले, ड्राय फुड, मंहगी लग्जरी गाडिय़ों में बैठने वाले बाबा जीवन जीने की कला सिखातें हैं। पूरी सिद्वांतों को ढोने की जिम्मेदारी आम आदमी के नाजुक कंधों पर डाल दी गई है।
जीवन जीने की कला आम आदमी से सीखी जा सकती है जो कई समस्याओं के बाद भी अपने रिश्तों,सार्वजनिक जीवन और नौकरी,पेशा, व्यवसाए में सामन्जस्य बनाए रखता है। महान ग्रंथ हितोपदेश में एक संस्कृत श्लोक का हिन्दी अनुवाद है कि ‘हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते साधु सर्वत्र नहीं होते , हर एक वन में चंदन नहीं होता । उसी प्रकार दुनिया में भली चीजें प्रचुर मात्रा में सभी जगह नहीं मिलती।Ó आजकल साधु हिमालय से नहीं आते हैं वे माकेर्टिंग से पैदा किए जा रहें हैं दुविधा में फंसा अवाम इन्हें सिर आंखों पर बैठाता है। खलाडिय़ों और फिल्मी कलाकारों के अपने अलग-अलग मंहगे टोटकें हैं। मध्यम वर्ग के तांत्रिक बाबा उनकी आर्थिक हैसियत के मुताबित सस्ते उपाय बतातें हैं क्योंकि लोग यथार्थ को गल्प और गल्प को यथार्थ मान बैठें हैं।
भारत में ही नहीं अंधविश्वास पूरे दुनिया में अलग-अलग रूपों में काबिज है। यह जरूरी नहीं है कि अनपढ़ व्यक्ति ही इसकी चपेट में आएं हैं पढ़े-लिखे लोग भी इस गटर डूबें हैं। अवाम ठगे जाने के बाद भी शुक्रगुजार हो जाता है और कुंद बाजारवादी सोच में सोच नहीं पा रहा है कि बाबा हो या राजनेता अवाम को शहद भी रेजर की धार पर लगा कर दे रहें है, भले ही जीभ जख्मी हो रही है पर हम रेजर की धार के षडय़ंत्र से अनजान शहद चाटने में लगें