भारतीय फिल्मों में हर रस को उबारने में जितना इस्तमाल बारिश का हुआ है उतना किसी और मौसम का नहीं हुआ है। बारिश अपने आप में मुकमल स्क्रिप्ट है,जिसमें विरह,श्रंगार आदि सभी रस इसमें समाहित है। दोयम दर्जे के हॉरर फिल्मों के जनक रामसे ने बारिश में हत्या को दिखाया, प्रेम पर आधारित फिल्मों में अलिखित तौर पर इश्क में मानद उपाधी प्राप्त यश चौपड़ा ने बारिश का विरह और प्रेम दृश्यों में इसका उपयोग किया। बारिश ने कई अभूतपूर्व दृश्य दिए है जैसे प्यार हुआ इकरार हुआ गीत का फिल्मांकन, फिल्म अर्जुन में बारिश में हत्या का रोंगटे खड़े कर देने वाला दृश्य आदि। बरसात प्रेमिका की याद क्यों दिलाती है इसका जवाब मौसम विशेषज्ञ और बारिश की पकौड़े से क्या केमेस्ट्री है इसका जवाब डायटिशन कभी नहीं दे पाएंगे। अनु मलिक जैसे संगीतकारों ने खामंखा बारिश पर मार्मिक गीत प्रस्तुत करने की कोशिश की है जिसमें उन्होने स्वयं गाया था की बाहर बारिश हो रही मेरे दिल रो रहा है।
इस तरह की बेहूदा हादसे भी होते रहें हैं। यह वही मौसम है जिसका सबसे ज्यादा बेसब्री से इंतजार किया जाता है और लगातार बारिश से इंसान को परेशान होते भी देखा है। गोया कि इंसान की फितरत ही खुद-परस्त है वो कायनात को भी अपने मन-मुताबिक ही देखना चाहता है। हास्य के पुरोधा चार्ली चैपलीन का मानना था कि बारिश इसलिए बेहतर है क्योंकि इसमें आपके आंसु को कोई देख नहीं सकता है। ठहठहाकों की असलियत शायरों से छुपी नहीं रहती है इसलिए कविता और शेरो-शायरी में भी बारिश को खासा स्थान मिलते रहा है, अटल बिहारी बाजपेयी ने लिखा है कि झील में पानी बरसता है हमारे देश में, खेत पानी को तरसता है हमारे देश में। यह सटायर राजीव गांधी के कथन की पुष्टी करता है कि हमारे देश में एक रूपया गरीबों तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसा हो जाता है।
अटल बिहारी बाजपेयी के अलावा और भी कवियों ने बरसात केन्द्र में रखकर व्यवस्था पर तीखे प्रहार किए हैं, जिसमें जाने बादलों में क्या साजिश हुई, जिनके घर मिट्टी के थे उन्ही के घर बारिश हुई एवं टपकती है छत उसके कच्चे घर की, फिर भी वो किसान दुआ करता है बारिश की जैसी उत्कष्र्ट रचनाएं हैं। भारत की फिल्मों में वर्षा ऋतु को इसलिए भी तवज्जो मिली है क्योंकि हमारे देश की संपूर्ण अर्थव्यस्था बारिश पर निर्भर है। पानी की अहमियत पर बनी भारत की माईलस्टोन फिल्म गाईड जनहित प्रकाशित एक ग्रंथ की तरह थी। जिसमें नायक लंपट है और साधु के वेश में एक ऐसे इलाके में पानी गिरवाने के लिए उपवास करता है जहां बरसों से सूखा है और आखिरी दृश्य देखीए जिसमें नायक कहता है कि ‘सवाल इसका नहीं है कि मैं जिंदा रहुंगा या नहीं सवाल इसका भी नहीं है कि बारिश होगी या नहीं सवाल यह है कि उपरवाला है की नहींÓ