मन का रंग रागों के संग-संग
फाग फगवा गाये, संग-संग, मन का रंग, रागों के संग-संग।
उड़त चहूॅ ओर, मन में बौछार, रंग रागों के संग-संग।।
मन से होली,कैसी होली,होली, किसकी होली, होली, होली होली।
कित जाऊ, खेलन, मन में आई, कौन संग, सखा सहेली।।
कौन तरह, तुम संग खेल हूॅ, मन में, रागों के संग-संग।
हुये बावरे मनमीत, सखा सहेली, खेलहीं संग-संग।।
मन ही मन रंगे बावरे, छेड़ो ना, छोड़ो ना मोरी बैया।
अखिंयन ना डारो, मन के रंग-गुलाल, रंग डाली मोरी चुनरियॉ।।
मन के रंग, रागों के संग-संग, गाय फाग रंग रसिया।
कित जाउॅ, मन के रंग रंगी, सखी,संग सहेली, बीच में ठाड़े, बाके सॉवरिया।।
फगवा के फूल, रागों का गुलाल, छोड़े राग रस सांवरिया।
मन के रंग, रागों के संग-संग, गाये फाग संग- संग ‘‘स्नेही’’ रसिया।।
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आओ, होली,खेले रे गुइय्या
आओ, होली,खेले रे गुइय्या
अबीर, गुलाल लगायें रे गुइय्या
उड़ाये रंग की बौछार रे गुइय्या,
आओंंंं, होली, खेले रे गुइय्या।
तन भीगो, मन फलो,
मन बगियॉ में आई बहार रे।
तोहें कौन समझाए रे, गुइय्या,
मन बसिया गाये फगुआ ‘‘स्नेही’’ फाग रे।।
जोंहे बॉट रही, गोरी आंगनिया,
बसे दूर परदेश, बाकें सावरियां।
होली, सखी संग, हुई सखी बांवरिया,
आओ,होली खेले रहे गुइय्या……………2
रचियता:- विजय आर्य ‘‘स्नेही’’
9827252643
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फौव्वारा
देखो तो, वो मुस्काते, कैसे चले जा रहें है,
रंग छिडक़ा,रंगों की बहार बिखरी।
मिल सब होली के, फाग गाये जा रहें है
फूल बन पुखड़ी खिली, राजी कमल नयन,
फाग रस पिए जा रहें है,
देखो तो, वो मुस्काते, कैसे चले जा रहें हंै।।
मुस्काते अधरों से, सितम जो ढा रहें हैं,
बाकी बात, तो बाकी है, फागुन के फाग,
साहिल सहेली मदहोश गीत
फगुआ रस बरसाये जा रहें हैं।।
जब जोखिम उठाया, झरने का फगुआ
रंग फौव्वारा बनाये जा रहें हैं।।
दिल को दिल से मिली राहत, जब राजी,
बन फूल अधरों से ‘‘ स्नेही’’
रस रंग पिलाए जा रहें है,
देखो तो, वो मुस्काते, कैसे चले जा रहें है।।2
रचयिता:- विजय आर्य ‘‘स्नेही’’
9827252643
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रंग बरसे रे!
रंग बरसे रे! होली आई, रंग बरसे रे……2
भीगी चुनरियाँ, रंग बरसे, रंग बरसे रे…..2
भेजी, कई चिठियाँ,…2 न आये मोरे साजन,
कौन घड़ी तक , बाँट जोहें, कब आवेगें साजन, मोरे आँगन।।
रंग बरसे रे! होली आई, रंग बरसे रे……2
भीगी चुनरियाँ, भीगो मन..2 साजन-साजन पुकारे, मोरो मन,
साजन अब तो आजा…..2 मोरे आँगन, है तरसे मन,बरसे रंग,
होली आई रे साजन…2 रंग बरसे र…, रंग बरसे, रंग बरसे रे।
सुधि ना लिनी, मोरी डगरिया, दूर बसे साँवरियाँ,
होली के रंग में होली सखी, हुई सखी बावरियाँ।।
रंग राज, नहीं होंगें, तो, होली, रंगीन कहाँ होगी,
रंग राज, नहीं साथ तो, रंग की बौछार कहाँ होगी।
रंग राज, बसे, ह्लदय-कानन, मैं तो संग रंगी ‘‘स्नेही’’ साजन…2
रंग बरसे रे! होली आई रे ! रंग बरसे रे…2 रंग बरसे..2
रचयिता:- विजय आर्य ‘‘स्नेही’’
9827252643
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