बैतूल। रामजन्म नवमी के पावन पर्व पर ग्राम कढ़ाई में श्रीरामजन्म उत्सव धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में गुरूजी विजय आर्य ‘स्नेही’ द्वारा देव यज्ञ एवं प्रवचन किया गया। देव यज्ञ के पश्चात गुरूजी विजय आर्य ‘स्नेही’ ने उपस्थित लोगों को राम के विषय में बताते हुए कहा कि मर्यादा पुरूषोत्तम रामचन्द्रजी के नौ लाख, सत्तर हजार एक सौ तेहरवां जन्म दिन 19 अप्रैल 2013 मनाने जा रहें है। प्राचीन साहित्य में पावन नगरी अयोध्या के उल्लेख हैं। आदि कवि बाल्मीकी कृत रामायण एवं संस्कृत कवि कालिदास के रघुवंश में इस अयोध्यापुरी की ख्याति वर्णित है। अर्थर्वेद के दसम मंडल में उल्लेखित अयोध्या नौ द्वार एवं अष्टा चक्रों वाली अयोध्या कही गई है। ‘अष्टा चक्रा नव द्वारा देवानापुर योध्दा’ दशरथ की अयोध्या, दस रथों वाली जहां युध्द ना हो वाली नगरी मानव शरीर ही है। जिसमें दशरथ याने पांच कर्म इंद्रियां व पांच ज्ञानेन्द्रियां वाला शरीर, ग्यारवां मन जो दशरथ का सखा है, सुमंत्र है, याने सुमन वाला और जब राम वनवास चले जाते हैं तो दशरथ बैचेन हो, शरीर त्याग देते हैं याने जब आत्म दशरथों वाले शरीर से चला गया। याने राम चले गये याने आत्मा शरीर से गई। तो राम याने आत्मा और आत्मा याने राम।
बाल्मीकी रामायण में अयोध्या की महिमा समस्त लोकों में सुविख्यात थी। वैसे तो मानव के शरीर ही अयोध्या नगरी कहाती है। शरीर में जो नौ द्वारा जिसे हमारे जीवित रहने व जीवन यापन के लिए कर्ण, नासिका,आंख के दो-दो छ: द्वार और मुंह,गुदा एवं योनी ये तीन द्वार कुल नौ द्वार है। आगे कहा है कि अष्टा चक्रा- याने हमारे शरीर में आठ चक्र हैं जिसे हम पहला सहत्रधार चक्र-जो सिर के मध्य में जहां तालु होता है, दूसरा बिंदु चक्र-यह सिर से उपरी भाग में जहां चोटी होती है, तीसरा आज्ञा चक्र- मस्तिष्क के बीच में दोनो भवों के बीच स्थित है। चौथा-विशुद्ध चक्र- जो गले के मध्य जहां पर दोनो श्वांस स्वरों का मेल सुषम्ना नाड़ी से होता है। पांचवा अनाह्रत चक्र- जो ह्रदय में स्थित बारह: कमल वाला है। छटवां मणीपूरक चक्र- नाभी के पीछे, रीढ़ में। सातवां स्वाधिष्ठान चक्र-जो रीढ़ की हड्डी के अंग में थोडा से पहले अचेतन मन का स्थान है। आठवां मूलाधार चक्र- जो गुदा व मुत्रेन्द्रिय के बीच जहां रीढ़ की हड्डी समाप्त होती है वहीं पर मूलाधार चक्र है। जो कुण्डलिनि शक्ति का मनुष्यों को अलौकित सुख मिलता है। इडा और पिंगला नाडिय़ा मूलाधार से प्रारंभ होकर प्रत्येक चक्र पर एक दूसरे को काटती हुई आज्ञा चक्र तक जाती है। कुण्डलिनि शक्ति इसी स्थान पर सुस्त पड़ी रहती है। योग क्रिया की विधि इसे जागृत करने सहत्राधार चक्र से योग होता है, तब कुण्डलिनि जागृत होती है। विभिन्न चक्रों द्वारा नाना प्रकार के संवेदक तथा कार्यवाहक नाड़ी समूह का संचालन होता है-इसकी रचना हम योगासन और व्यायाम के द्वारा अपना शरीर शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ्य तथा निरोग रखें। ‘हर जगह मौजूद है, पर वह नजर आता नहीं। ‘स्नेही’ योग-साधना के बिना, कोई उसे पाता नहीं।।
’ यौगिक नाडिय़ा सुक्ष्म शरीर में होती हैं। ये स्थुल नाडिय़ा नहीं हैं। सुक्ष्म नाडिय़ा शरीर में 72000 हैं। सुक्ष्म स्थुल नाड़ी तथा चक्रों के शरीर में स्थुल रूप भी है। सुक्ष्म नाडिय़ा तथा चक्रों निकट का संबंध है। ये नाडिय़ां कुंड अथवा गुदा और जनेनेन्द्रियों के मध्य (मूलाधार) के नीचे से निकलती है। इन 72000 नाडिय़ों में 14 मुख्य हैं। इन्ही में तीन इडा, पिंग्ला और सुषम्ना है। इडा कुंड के दाहिने पिंग्ला उसके बायें भाग से निकलकर मूलाधार चक्र में सुषम्ना नाड़ी से मिलकर एक गांठ बनाती है। जो आगे चलकर वे स्वाधिष्ठान चक्र और अन्य चक्रों से मिलती हुई अंत सहत्राधार चक्र मिलकर समाप्त होती है। सुषम्ना नाड़ी के समकक्ष ही है। श्रीमद् भगवत गीता के अनुसार – योग अनुष्ठान में जहां चित रम जाता है। वहां आत्मा को देखकर, आत्मा की संतुष्टि होती है। मन डिगता नहीं। कहीं दूसरा काम उसे आकर्षित नहीं कर पाता है। मन की यही स्थिती योग है। इस प्रकार साधक शांत चित होकर कर्मो के बंधन से मुक्त होकर वास्तविक आंनद उपलब्धि करता है। यही दशरथ रूपी शरीर में राम नाम की आत्मा जब राम-आत्मा, आत्माराम, परमात्मा की व्यवस्था में रहता है और इसअयोध्यापुरी को सच्चिदानंद रूपा भी कहते हैं। ‘तुम्हारे दिव्य दर्शन की, मैं इच्छा लेकर आया हूं’।‘स्नेही’ पिला दो प्रेम का अमृत, पिपासा लेकर आया हूं।। देव यज्ञ के यजमान श्रीमति मीरा श्रवण जावलकर व कमलेश जावलकर थे एवं बटनी पवांर, रेखा जावलकर, रीता पवांर, पूनम, गोरलाल पवांर, जगंती जावलकर, चमन आर्य, मुकेश सुंदरम व बड़ी संख्या में ग्रामीणजन उपस्थित थे।