युवाओं पर केंद्रित इस तरह की फिल्में वर्तमान पीढ़ी पर शोध पत्र के तरह प्रस्तुत है। फिल्म आज के युवाओं की उनमुक्त जीवन शैली का श्रेष्ठ उदाहरण है, जिसमें उल्लेख है कि आज का युवा अपने जूनन के लिए रिश्तों को खारिज कर देता है, ऐसा ही कुछ कांसेप्ट रॉक स्टार में भी था। रणवीर कपूर रॉक स्टार में भी थे और इस फिल्म में भी, और दोनो ही फिल्मों का मूल लगभग एक जैसा है। नायक खानाबदोश प्रकृति का है और कालांतर में अपने रिश्तों की गहराई का भान होता है।
नायिका भी अपने अरूचिकर और थोपे गये कैरियर के प्रति भी संजीदा है और विरह से कराहती नहीं है, वो कहती है कि ‘वो वापस नहीं आया और मैने भी कभी उसका इंतजार नहीं किया। नायिका भी ठोक बजाकर रिश्ते बनाना जानती है और नायक से कहती है कि ‘तुम चले जाओ नहीं तो मुझे प्यार हो जाएगा, एक बार फिर, और तुमको नहीं होगा, एक बार फिर’। विगत एक दशक में भारत में बहुत तेजी से बदलाव आया है, युवाओं को केन्द्र में रखकर फिल्में ही नहीं प्रोडेक्ट भी गढे जा रहें हैं। पूरी फिल्में महानगर की युवा जिंदगी की नसों पर सहलाते हुए बनाया गया है। नायक एक दृश्य में स्वीकार करता है कि उसे रफ्फातर पसंद है, वह दौडऩा चाहता है और गिरना चाहता है। यह साफगोई स्वीकारोक्ति आज की पीढी का हस्ताक्षरित श्वेत पत्र है? फिल्म के निर्देशक अयान मुखर्जी स्वयं युवा हैं और उन्होने आशुतोष गोवारिकर की फिल्म स्वदेश में सहनिर्देशक रहें हैं।
इस फिल्म में आशुतोष ने भारत को एक अलग नजरीये से दिखाया था। अयान फिल्म स्वदेश की धारा से इत्तफाक नहीं रखते हैं, गोया की अयान का भारत स्वदेश के नायक की तरह भारत में स्थापित होना नहीं चाहता है, उसके लिए पूरा ब्रह्मण बाहें पसार रहा है। फिल्म में संगीत शानदार है,और फिल्म की बैक बोन बनकर समांतर चला है। एक आइटम नम्बर माधूरी नेने को लेकर डाला गया है। माधूरी के नृत्य में मादकता,चेहरे के भाव और सफाई बताने के लिए काफी है कि क्यों माधूरी ने इतने सालों तक बॉलीवुड पर राज किया था। अभिनय रणवीर के जींस में है, और उसके अभिनय में बेहिसाब प्रयास नहीं दिखते, ना ही लगता है की वो बहुत होमवर्क करता होगा। अमीर खान जैसे सितारों का फलसफा है कि बर्तन घिसने से चमकता है जिसे वो होमवर्क कहते हैं,ये भी युवा ही पीढी का शगल है जिसमें माना जाता है कि बर्तन ज्यादा घिसने से छन जाता है।
दिपिका पादुकोण पेशेवर सितारा है, उन्होने अपने और रणवीर के चर्चाे को बखूबी हैंडल किया है। मीडिया में इन दोनो के चर्चे और बे्रक अप के किस्से आम रहे हैं। तीस बरस पहले की अभिनेत्री ऐसी परिस्थितियों में उसी अभिनेता के साथ काम नहीं कर सकती थी। फिल्म के आखिरी दृश्य में ह्रदयस्पर्शी है जिसमें नायक कहता है समय खर्च नहीं होता, हम खर्च हो जाते हैं। इस पूरी फिल्म के फ्लो को इसी फिल्म के एक गीत की कुछ पंक्तियों में निहित है गौर फरमाइयेगा-शामें मलंग सी, राते सुरंग सी ,बागी उड़ान पे ही ना जाने क्यों,कल पे सवाल है जीना फिलहाल है,खानाबदोशियों पे ही जाने क्यों,मेरा फलसफा कंधे पे मेरा बस्ता,चला मैं जहां ले चला मुझे रास्ता,शामें मलंग सी, राते सुरंग सी….