बैतूल। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के गीत और नाटक प्रभाग द्वारा प्रायोजित एवं एम राजा मन्नार के दिशानिर्देशन में नाटक जमुनिया बैतूल की कृषि उपज मंडी में 27 अगस्त से निरंतर चालू है , आज शनिवार को जमुनिया बैतूल को अलविदा कर देगी। इस कार्यक्रम के निर्देशक बलजीत सिंह मानते है कि बैतूल में लोगों को नाटक कला की अच्छी समझ है और वो पूरी तनमयता के साथ शो को देख रहें हैं,वे दर्शक के प्यार से काफी अभिभूत एवं प्रभावित हुए हैं। इस नाटक में 150 कलाकारों से सुसज्जित, आतिशबाजी,ध्वनि के एवं प्रकाश के स्पेशल इफेक्ट सभी का मनोरंजन कर रहें हैं। जिसमें बैतूल जिले के बच्चे भी भाग ले रहें हैं। इस नाटक में पूरे भारत से कलाकार सम्मलित किए गए हैं। जमुनिया एक नारी के संघर्ष की विजय गाथा है जो समाज से लडक़र अपने अधिकारों को हासिल करती है। नाटक की नायिका जमुनिया और खलनायक दीवान के आसपास इसकी कहानी घूमती है। जिसमें होली का नृत्य और भांगडा और मनमोहक नृत्य दर्शकों का आर्कषण बन रहें हैं। जिसमें जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक भी शामिल हैं। जमुनिया के रोल में उपाधी सिंग दिल्ली और दिवान के रोल में दीपक सिंह के अभिनय की सराहना की जा रही है। गुरूजी के रोल में विनय शर्मा का किरदार भी अच्छा उबरकर सामने आता है, बाकी दंदी, फंदी,मेघा, शिल्पी, मुकंदी, जयंत की भी अपने किरदार के साद न्याय किया है। कोरियोग्राफर मनी थापा द्वारा दिया गया है।
क्या कहती है जमुनिया
सुप्रसिद्ध नाटक जमुनिया बदलते भारत की तस्वीर में मुख्य किरदार निभाने वाली उपाधी सिंग दिल्ली का कहना है कि रंगमंच अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। टीवी संस्कृति के विकास के बावजूद रंगमंच का क्रेज खत्म नहीं हुआ है। रंगमंच जनमानस पर टीवी सीरियल और फिल्मों से ज्यादा प्रभाव डालता है। उनका मानना है कि जमुनिया के माध्यम से हम जो संदेश जनता के बीच पहुंचाना चाहते हैं उसमें पूरी सफलता मिली है। ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से मंचित होने वाले इस नाटक में उपाधी जमुनिया का किरदार प्रभावशाली ढंग से निभा रहीं हैं।
उपाधी सिंग कहती हैं कि यह किरदार निभाते हुए उन्हें गर्व का अनुभव हो रहा है। अब तो लोग उनका असली नाम ही भूलते जा रहे हैं लोग उन्हें जमुनिया कहकर पुकारते हैं तो अच्छा लगता है। कलाकार के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि लोग उसे किरदार के नाम से जाने और पहचाने। उन्होंने बताया कि जमुनिया एक औरत की कहानी है जिसने बहुत दुख झेले लेकिन हिम्मत नहीं हारी। कुरीतियों से लड़ी और आखिर कामयाबी मिली। यह नाटक संदेश देता है कि हर महिला में पढऩे और लडऩे की ललक होनी चाहिए। यह नाटक औरतों को अपने हक के लिए लडऩे और अधिकार हासिल करने का संदेश देता है। उनका कहना है कि ध्वनि व प्रकाश के माध्यम से नाटक के मंचन की विधा काफी प्रभावी साबित हो रही है। इसके माध्यम से नाटक को अच्छे और प्रभावी ढंग से पेश किया जा सकता है। हमेें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह विधा दर्शकों को काफी प्रभावित कर रही है। उपाधी सिंग कहती हैं कि वह महिलाओं को संदेश देना चाहती हैं कि महिलाओं को कभी अपने को कमजोर नहीं समझना चाहिए। उसमें अपने अधिकारों की जानकारी और हक पाने की ललक ही नहीं हासिल करने का हौसला भी होना चाहिए। यही जमुनिया तस्वीर बदलते भारत की नाटक का संदेश भी है।