बैतूल। दिन और रात को भगवान शिव की कथा का बखान करने तथा भजन गीत गाकर रात भर जागरण के साथ राजेन्द्र वार्ड की महिलाओं ने प्रात:काल विधि विधान के साथ पूजन सामग्री का माचना में विसर्जन किया तथा अपना उपवास छोडक़र अन्नजल ग्रहण किया। हरतालिका तीज में महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए यह व्रत करती है। इसमें बिना भोजन और पानी के रहकर भगवान से उनके दीर्घ आयु की कामना करती है। इस व्रत को शिव भोले के निवास पर संपन्न किया गया। श्रीमति द्वारका भोले ने बताया भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। इस व्रत की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए कही थी। हरतालीका की कथा बताते हुए सुनीता राठौर ने बताया कि पार्वती अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थी। इस जन्म में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं। एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया। तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं। वहां उन्होंने अपने पति शिव का अपमान होने के कारण यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी। अगले जन्म में सती का जन्म हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां हुआ। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी। पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई। पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए। इस अवसर पर सैकड़ों महिलाओं ने माचना नदी में पूजन पाठ किया।