बैतूल। मप्रसहकारिता समिति बैतूल ने मुख्यमंत्री को पाती लिख कर अपना दर्द बयां किया है। पाती में उल्लखे है कि आपके नेतृत्व में मध्यप्रदेश पिछड़े से विकासशील एवं विकसित राज्य की श्रेणी में आ रहा है। आप सजग प्रहरी, पांव में चक्कर, मुंह में शक्कर, सीने में आग एवं शीतलतम दिमाग एवं अनवरत् प्रयासों के साथ जनता को परमात्मा स्वरूप मानकर बेटियों को देवी स्वरूप देखकर, उनके सर्वांगीण विकास हेतु तत्पर है। हम परम सौभाग्यशाली है जो आपकी कर्मपरायणता एवं प्रशासनिक दक्षता के आलोक में सहकारिता के माध्यम से जनता की सेवा हेतु प्रयासरत है। हमारी विषयंाकित पीड़ा को दिल की गहराईयों से समझकर उसके निवारण की कृपा करे। व्यथा यह है कि -सहकारी समिति के माध्यम से किसानों को खाद, बीज एवं नकद कर्जा वितरण करने में पैक्स कर्मचारी मुख्य भूमिका अदा करते है। सम्पूर्ण भारत वर्ष में मध्यप्रदेश में शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर किसानो को कर्जा देने के आपके भागीरथी प्रयास को लक्ष्य तक पहुुंचाने में क्या हमारा योगदान कुछ भी नही है ? बिना कृषि आदानो की आपूर्ति के क्या 18 प्रतिशत कृषि विकास दर हमारे द्वारा प्राप्त की जा सकती थी,सार्वजनिक वितरण प्रणाली में एक रूपये किलो गेहू एवं दो रूपये किलो चावल पात्र हितग्राही तक पहुंचाने व रियायती दर पर केरोसीन एवं शक्कर गरीब की कुटी तक पहुचाने में एवं घेंघा जैसी बीमारियों से निजात दिलाने हेतु आयोडाइज्ड नमक उपलब्ध कराने में हमारा ही अहम योगदान हैं,दुर्गम एवं पहुंचविहिन ग्रामीण क्षेंत्रो में उपरोक्त दोनो योजनाये सफलतापूर्वक संचालित करने तथा गांव में किसी गरीब के यहां गमी हो जाये तो नियमों को ताक पर रखकर विक्रेता उसके यहां केरोसीन तत्काल उपलब्ध कराने तथा साथ ही धार्मिक आयोजनों में गेहूं, चावल तथा शक्कर की आपूर्ति करने में कभी कोई इंकार नही करता एवं हर संभव मदद करता है,उपरोक्त सभी कार्य यथा सामथ्र्य करने के बावजूद समिति कर्मचारी पर आरोप लगते है कि केरोसीन, खाद्यान्न एवं शक्कर के वितरण में उसने गड़बड़ी की है। खाद्य, बीज समय पर नही बांटता हैं, जबकि समिति कर्मचारी पर नियंत्रण राजस्व, खाद्य विभाग, जिला सहकारी बैंक, सहकारिता विभाग, निगरानी समिति तथा संचालक मंडल हैं, प्रदेश में आपके नेतृत्व में केन्द्र सरकार के घोषित समर्थन मूल्य से रूपये 150 प्रति क्विंटल अधिक समर्थन मूल्य पर गेहूं एवं धान का रिकार्ड उपार्जन करने में हम रात-दिन लगे रहते है। इसी कारण पूरे देश में गेहूं उपार्जन में मध्यप्रदेश प्रथम पंक्ति मे है। यहां तक कि पुरस्कार भी प्राप्त कर चुका है। हमारे योगदान को नगण्य समझते हुये हमे शासन के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से भी काफी कम वेतन बल्कि पारिश्रामिक से भी कम कहना उचित होगा, आयुक्त सहकारिता एवं पंजीयक सहकारिता संस्थाये म.प्र. ने अपने आदेश क्र. 2046 दिनांक 30.08.2013 से पैक्स कर्मचारियों के सेवा नियम जारी किये है। जिसमें रूपये 500/-, 4500/-, 5000/-, 5500/- तथा 6000/- रूपये न्यूनतम विभिन्न श्रेणी कर्मचारियों का वेतन निर्धारित किया है। इससे अधिक वेतन तभी समिति दे सकती है जब समिति पिछले तीन वर्षो से लगातार लाभ मे हो विगत तीन वर्षो से संचित हानि में न हो, तथा विगत तीन वर्षो में पूूंजी व जोखिमपूर्ण संपत्ति अनुपात (सी.आर.ए.आर.) 7 प्रतिशत या नाबार्ड द्वारा संशोधित दर के अधीन हो। इसका हम विरोध करते है, अधिकांश पैक्स समितियों में उपरोक्त मापदंडों की पूर्ति नही हो सकती क्योकि –
अ समिति जिला सहकारी बैंकों से ऋण लेकर कृषको को अल्पकालीन कृषि ऋण बांटती है जो कृषक ओलापाला, अतिवृष्टि, अनावृष्टि या अन्य कारणों से जमा नही कर पाते है किंतु बैंक समितियों के किसी भी खाते मे ंराशि हो उसे अपना ऋण ब्याज सहित वसुल कर लेता है। फलस्वरूप समितियो एवं बैको के मध्य ऋणान्तर बढ रहा है तथा समितियां घाटे जा रही है।
ब खाद एवं पी.डी.एस. के व्यवसाय में लाभ का मार्जन कम होने से हानि होती है। उक्त दोनो ही सेवाये कृषक कल्याण एवं जनकल्याण की ही है। शासन इसे लाभ प्रदता से जोडक़र देखता है जो उचित नही है।
8. उपरोक्त परिस्थितियों में पैक्स के लाभ मे आने व पंजीयक सहकारी संस्थाये के मापदंडो मे आने की संभावना नही है। यह स्थिति पंजीयक व शासन से छुपी नही है। तब ऐसे मापदंड निर्धारित कर हमे जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक वेतन देने की कोई कारगर योजना नही बनाई जा रही है।
अत: मान्यवर निवेदन है –
1. शासन जिस प्रकार स्थानीय निकायो तथा ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत के कर्मचारियो का वेतन भार स्वयं वहन करता है उसी प्रकार पैक्स कर्मचारियो के वेतन की जिम्मेदारी लेवे।
2. स्थानीय निकायों तथा सहकारी संस्थाये दोनो ही जनता की, जनता के लिये तथा जनता द्वारा गठित व संचालित प्रजातांत्रिक संस्थाये है। अत: पैक्स कर्मचारियो को भी पंचायत सचिवों के समकक्ष वेतन शासन की निधि से दिया जावे।
3. यदि समिति का पूरा वेतन भार देना संभव न हो तो समितियो को उनके कार्य एवं कर्मचारियों के अनुपात को दृष्टिगत रखते हुये कम से कम दो लाख, तीन लाख एवं चार लाख रूपये वार्षिक प्रबंधकीय अनुदान दिया जाये। जिससे की कर्मचारियों को जीवन निर्वाह स्तर का वेतन मिल सके।
अंत में पुन: निवेदन है कि हम लोग समिति स्तर के बहुत छोटे कर्मचारी है। अधिकांश कर्मचारी अधेड़ आयु को पार कर चुके है, कई सेवानिवृत्त हो चुके है। अब कही और जाकर दूसरा काम धंधा ढूंढने व करने की स्थिति में नही है। शासन के विरूद्ध कोई आंदोलन व हड़ताल करने की हमारी सामाथ्र्य नही है। वास्तव मे हम लोग निष्ठापूर्वक अपने कार्यो को कर रहे है एवं आगे भी करते रहेगे।
आपकी नेतृत्व क्षमता व जनता की सेवा के जजबे को नमन करते हुये पुन: करबद्ध निवेदन के साथ हम आशान्वित है कि आपने समाज के हर वर्ग एवं शासकीय कर्मचारियो को यथासामाथ्र्य समर्थ बनाया है, हमे भी निराश नही करेगे। इसी आशा एवं विश्वास के साथ आपके निष्ठावान समस्त सहकारी कर्मचारी जिला बैतूल।