बैतूल। करवाचौथ के व्रत में छलनी से चांद को देखकर व्रत खोलने की परंपरा है। कुछ स्थानों पर इसे चलनी भी कहा जाता है। अमीर हो या गरीब सभी वर्ग की महिलाएं इस अवसर पर नई छलनी खरीदती हैं। व्रत की शाम छलनी की पूजा करके चांद को देखते हुए प्रार्थना करती हैं कि उनके सौभाग्य और सुहाग सलामत रहे। ऐसी ही राजेन्द्र वार्ड में महिलाओं द्वारा करवाचौथ का व्रत सुनीता राठौर के निवास पर करवा चौथ की पोथी पढकर, निराआहार रहकर, निर्जला व्रत संपन्न किया। इसमें सभी महिलाओं ने अपने पति की लम्बी आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर अपने पतियों के चरण धोकर पतियों का आशीर्वाद भी प्राप्त किया। इस अवसर पर सुनीता राठौर ने बताया कि करवाचौथ में छलनी का प्रयोग किए जाने के पीछे पौराणिक कथा है। एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम वीरवती था इसने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा। लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी। भाईयों से बहन की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पिछे दीया रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई।
वीरवती को जब झूठे चांद को देखकर व्रत खोलने के कारण पति की मृत्यु होने की सूचना मिली तब वह बहुत दु:खी हो गई। वीरवती ने अपने पति के मृत शरीर को सुरक्षित अपने पास रखा और अगले वर्ष करवाचौथ के दिन नियम पूर्वक व्रत रखा जिससे करवामाता प्रसन्न हुई। वीरवती का मृत पति जीवित हो उठा।
सुहागन स्त्रियां इस घटना को हमेशा याद रखें। कोई छल से कोई उनका व्रत तोड़ न दे, इसलिए स्वयं छलनी अपने हाथ में रखकर उगते हुए चांद को देखने की परंपरा शुरू हुई। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सिखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके। द्वाराका भोले ने कहा कि करवा चौथ व्रत स्नेह का प्रतीक है। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से मीना ठाकुर, ज्योति राठौर, सुनीता राठौर, द्वारका भोले, भावना ठाकुर व अन्य महिलाएं उपस्थित थी।