बैतूल। श्रीराम चरित्र में गौस्वामी तुलसीदास जी ने कतिपय प्रसंगो में दान धरम की महिमा दर्शाये है। उत्तरकांड में कलयुग वर्णन में दान धर्म को श्रेयकर बताया है यथा
प्रगट चार पद धर्म के कलिमहु एक प्रदान, जैन केन विधि दीहे दान करइ कल्याण अर्थात इस इस कलयुग में दान ही प्रमुख है। चाहे जैसे भी बन पड़े, उदारतापूर्वक उचित पात्रों को दान देकर अपना कल्याण करें। वर्तमान में उचित पात्रों को खोजना असंभव है। इसलिये गौ माता को गौग्रास के रूप में उनके भोजन की व्यवस्था हेतु सहयोग करना चाहिये।
तन से सेवा कीजिये, मन में भले विचार धन से इस संसार में करिये पर उपकार उक्त उदगार पंडित रामस्वरूप दुबे ने त्रिवेणी गौशाला में चल रही कथा के दौरान दान की महिमा को वर्णित करते हुए कहे। गौरक्षार्थ, शासन द्वारा मुक्त कराई गई, अशक्त,कमजोर,बीमार गौवंश के इलाज, निवास स्थल निर्माण एवं प्रतिदिन के चारा भूसा या सामग्री अथवा एक रूपये प्रतिदिन प्रति गौवंश गौ ग्रास हेतु सहयोग राशि प्रदान कर गौरक्षा के पुनित कार्य में सहयोग करें। भारतीय संस्कृति एवं शास्त्रों में दान का विशेष महत्व है । चारो आश्रमों में गृहस्थ आश्रम को महत्ता दी गयी है।
दान करने से विद्या, ऐश्वर्य, यश एवं देवलोक की प्राप्ति होती है, कुछ ज्यादा नहीं हो सकता है तो कम से कम संक्राति पर गौग्रास का दान करें।