श्यामा प्रसाद मुखर्जी ज्ञानपूर्ण विचारों से तात्कालिक परिदृश्य की ज्वलन्त परिस्थितियों का इतना सटीक विश्लेषण किया :शिव चौबे
डॉ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे:लिटोरिया
बैतूल। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ज्ञानपूर्ण विचारों से तात्कालिक परिदृश्य की ज्वलन्त परिस्थितियों का इतना सटीक विश्लेषण किया कि समाज के हर वर्ग को उनकी कुशाग्र बुद्धि का लोहा मानना पड़ा। उनकी ख्याति और कीर्तिमानों को मान्यता मिली और मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी। उक्त विचार मुख्य मंत्री के निज सचिव शिव चौबे ने मप्र झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ एवं अटल सेना के संयुक्त तत्वाधान में आंगनवाड़ी के पास,शंकर वार्ड, झुग्गी झोपडी में महान शिक्षाविद्, चिन्तक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के अवसर पर व्यक्त किये। निज सचिव शिव चौबे,भाजपा संगठन मंत्री जितेन्द्र लिटोरिया, भाजपा जिलाध्यक्ष अनिल कुशवाह, सैनिक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष अशोक पवांर, पूर्व युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष सतीश बडोनिया, जिला संयोजक राजेन्द्र सिंह चौहान केन्डु बाबा, प्रदेश कार्य समिति सदस्य एवं बैतूल, हरदा,छिंदवाड़ा प्रभारी संजय मानेकर द्वारा श्यामा प्रसाद मुखर्जी के छायाचित्र पर माल्यापर्ण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इस अवसर पर जितेन्द्र लिटोरिया ने कहा कि डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से देशप्रेम और राष्ट्रप्रेम का अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया और राष्ट्रप्रेम का सन्देश जन-जन में फैलाने की अपनी पावन यात्रा का श्रीगणेश किया। डॉ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। इसलिए उन्होंने सक्रिय राजनीति कुछ आदर्शों और सिद्धान्तों के साथ प्रारम्भ की थी। अनिल सिंह कुशवाह ने कहा कि अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। राजेन्द्र सिंह चौहान केन्डु बाबा ने कहा कि संसद में उन्होंने सदैव राष्ट्रीय एकता की स्थापना को प्रथम लक्ष्य रखा। संसद में दिये गये अपने भाषण में उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि राष्ट्रीय एकता की शिला पर ही भविष्य की नींव रखी जा सकती है। देश के राष्ट्रीय जीवन में इन तत्वों को स्थान देकर ही एकता स्थापित करनी चाहिए। क्योंकि इस समय इनका बहुत महत्व है। इन्हें आत्म सम्मान तथा पारस्परिक सामंजस्य के साथ सजीव रखने की आवश्यकता है। है। संजय मानेकर ने कहा राजनीति में प्रवेश से पूर्व देश सेवा के प्रति उनकी आसक्ति की झलक उनकी डायरी में 7 जनवरी, 1939 को उनके द्वारा लिखे गये निम्न उद्गारों से मिलती है हे प्रभु! मुझे निष्ठा, साहस, शक्ति और मन की शान्ति दीजिए,मुझे दूसरों का भला करने की हिम्मत और दृढ़ संकल्प दीजिए,मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए कि मैं सुख में भी और दुख में भी,आपको याद करता रहूँ और आपके स्नेह में पलता रहूँ। हे प्रभु! मुझसे हुई गलतियों के लिये क्षमा कीजिए और मुझे सद्प्रेरणा देते रहिए। अशोक पवांर ने कहा कि डॉ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरेआज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। ऐसी परिस्थितियों में डॉ मुखर्जी ने जोरदार नारा बुलन्द किया – एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगें। संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में डॉ मुखर्जी ने धारा 370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। सतीश बड़ोनिया ने कहा कि अपने संकल्प के लिए वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नजऱबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार वे भारत के लिये एक प्रकार से शहीद हो गये। डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के रूप में भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया जो हिन्दुस्तान को नयी दिशा दे सकता था। कार्यक्रम का मंच संचालन संजय मानेकर ने एवं आभार झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ के नगर अध्यक्ष ज्ञानेश पटने ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से कादर शाह, महादेव पंडोले, बंटी धुर्वे, मनोज पवांर, रमेश सोलंकी, संतोष साहू, संतोष किरोदे, नंदु हिवराडे, कलीराम पवांर, हरीओम तिवारी, सवीता पवांर, सरोज ठाकुर, कसारन बाई, शांता पवांर, दुर्गा सातनकर, पूजा वरवड़े,राधा उइके सहित सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित थे।