त्वचा फेफ ड़े संबंधी, गठिया, वात संबंधी एवं शरीर से टाक्सीकेंट, जहर प्रभाव को दूर करने के लिये कबर बिज्जू के मांस एवं रक्त से बनती है औषधि
बैतूल । कहते है भय के बिना प्रीत नहीं होती है, लेकिन कभी कभी भय अविष्कार और शोध का भी कारण बन जाता है। ऐसा ही एक मामला बैतूल का है। एडव्होकेट गीता पवांर विकास नगर बैतूल एवं डॉ. ज्योति शर्मा सिविल लाईन बैतूल ने जेएच कॉलेज बैतूल के प्राणीशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ सुखदेव डोंगरे को बताया कि उन्हें उनके घर के नजदीक बड़े आकार एवं लंबी पूंछ वाला झबरीले बाल वाला प्राणी दिखा। डॉ सुखदेव डोंगरे ने मेमल फ ाइलम के एनिमल्स के चित्र बताये, तो उन्होने कबर बिज्जू के फ ोटोग्रॉफ पर अपनी सहमति दी। गौरतलब है कि यह श्री डोंगरे का पसंदीदा विषय रहा है, जिसमें उन्होने बार्न आउल एवं गौरैया पर मोबाईल रेडिएशन का प्रभाव पर शोध कर चुके हैं। श्री डोंगरे इसके बाद तुरंत अपने काम में लग गये और उन्होने पाया कि कबर बिज्जू को पराडोक्सूरस हर्मेफ्र ोडाईट्स जुलोजिकल नाम से जाना जाता है, इसे ट्री केट्स, उडन डाग, मूसांग, ऐशियन पाम सिवेट भी कहते है। कबर बिज्जू 23 इंच लंबा, पूंछ 21 इंच एवं वजन 4 किग्रा होता है। यह निशाचर जीव है। दिन में पेड़ों के खोखले में आराम करता है। पेड़ों पर आसानी से चढ जाता है। यह मांसाहारी, शाकाहारी एवं सर्वहारी जीव है। जोशी (1995), ग्रासमैन (1998), कृष्णकुमार (2003), पीएस जोथिस (2010), प्रो आरजी वर्मा(2014) के अनुसार कबर बिज्जू ताड़ के पेड़ों पर रहता है, इसलिये इसको एशियन पाम सिवेट कहते है, तथा यह मरघट में अधिकतर निवास करता है। गड़े मुर्दे निकालकर खा जाता है। छोटे बच्चों के शव, मेमल्स, रेपटाइल्स, स्नेल्स, चूहे को खाता है। फ लों को भी जैसे आम, पपीता, अमरूद, काफ ी को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। काफी को खा कर काफ ीलुआक का निर्माण करता है। कबर बिज्जू गुस्सैल एवं आक्रामक स्वभाव का जीव है, इसलिये इसके साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिये। जंगलों में तथा पेड़ों वाले स्थान जो मानव सभ्यता के आसपास रहने वाला जीव है। यह मानव के लिये अत्यन्त लाभकारी जीव है, पकंज उदय (2006) के अनुसार इसके ब्लड से त्वचा संबंधी औषधि, इसके मीट से फेफ ड़े संबंधी, गठिया, वात संबंधी एवं शरीर से टाक्सीकेंट, जहर प्रभाव को दूर करने के लिये औषधि तैयार की जाती है। एशियन पाम सिवेट के शिकार करने एवं पकडऩे पर चीन, मलेशिया, बर्मा एवं फिलिपीन्स देश में पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। आईयूसीएन (2008) में संकटग्रस्त एनिमल्स के अन्तर्गत कबर बिज्जू को रखा गया है। उपरोक्त देशों में इसकी संख्या वृद्धि के लिये नेशनल पॉर्क एवं सेंचुरी जैसे स्थान गठित किये है। वर्तमान में भारत ने भी लगभग 70 प्रतिशत कबर बिज्जू की संख्या कम हो गई है, इसलिये भारत में भी कबर बिज्जू को संरक्षण की आवश्यकता है, क्योकि कबर बिज्जू मरे मेमल्स को खा कर पर्यावरण शुद्ध करता है, मानव प्रजाति को मीट, रक्त के द्वारा औषधि प्रदान करता है, विभिन्न पौधों के बीजों को खाकर उनको दूर-दूर तक फैलाता है, इसके शरीर में सेंटग्लेंड होती है, जिससे परफ्यूम तैयार किया जाता है। फिलिपीन्स में इसके द्वारा काफ ी बनाई जाती है। चीन तथा अन्य देशों में इसके मीट को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस अनुसंधान कार्य का समर्थन विभागाध्यक्ष प्रो आरजी वर्मा, प्राचार्य डॉ सुभाष लव्हाले, हिन्दी विभाग के डॉ रमाकांत जोशी ने भी किया है।