फिल्म का नामकरण बेबी रखा गया है लेकिन इसमें इमोशन का कॉलम पूर्णत: निरंक है। फिल्म में एफबीआई और रॉ की तर्ज पर एक टीम बनाई जाती है जिसके मिशन का नाम बेबी रखा गया है। टीम के सभी सदस्यों का परिचय भारत सरकार द्वारा नष्ट कर दिये जाता है और शर्त यह है कि दुर्गम स्थिती में उन्हें पहचाने से भी मना कर दिया जाएगा। फिल्म एक था टाईगर में भी इसी थीम पर बनाने की कोशिश की गई थी, जो एक हादसे के रूप में जानी जाएगी। बेबी एक नाजुक शब्द है पटकथा उतनी कठोरता से प्रस्तुत की गई है। दरअसल हमारी सोच इतनी बाजारवादी हो गई है कि इसमें संवेदना के लिए शायद ही कुछ बचा हो। लोग विषम से विषम परिस्थितियों में भी उपभोक्तावादी संस्कृति के मोहपाश से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। हास्यपद यह भी है कि अर्थशास्त्र में ‘बाजारवाद नाम की कोई भी अवधारणा नहीं है। फिल्म में जेम्स बांड की तर्ज पर ही थ्रिल को गढ़ा गया है और असंवेदनशीलता भी। आतंकवादियों के मामले पर फिल्म में नये तथ्य दिखाये गये है जैसे की सीमा पार के लोग हमारे देश के नागरिकों को ही उनका हथियार बना रहे हैं। वे हमारी सरकार के खिलाफ खास समुदाय के लोगों के मन में संदेह पैदा कर रहे हैं ताकि उनका काम आसान हो। दूसरी ओर बेबी यूनिट प्रमुख फिरोज को मुस्लिम दिखा कर निर्देशक और लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है आतंकवादियों को किसी खास समुदाय से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। बेबी का निर्देशन किया है नीरज पांडे ने, जिनके नाम के आगे ए वेडनेस डे और स्पेशल 26 जैसी बेहतरीन रोमांचक फिल्में हैं। वास्तविक घटनाओं से प्रेरणा लेकर वे थ्रिलर गढ़ते हैं। फिल्म का पहला हॉफ गति देने के लिए प्लाट बना है और सैकंड हॉफ एकदम कसा हुआ है जिसमें बेहतरीन है। खासतौर पर फिल्म के अंतिम 45 मिनट जबरदस्त है और इस दरमियान आप कुर्सी से हिल नहीं पाते हैं, ये 45 मिनट पलक झपकने की भी इजाजत नहीं देते हैं, जिसमें बैकग्राऊंड म्युजिक का खासा योगदान रहा है। जिसे संजय चौधरी ने दिया है, संजय सरफरोश में भी इसी तरह का काम कर चुके हैं। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी ऊंचे दर्जे की है। नीरज पांडे द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट में कुछ खामियां भी हैं, जैसे बिलाल जैसा कुख्यात आतंकी जो अपने आपको कसाब से बड़ा आतंकी मानता है, बड़ी आसानी से मुंबई से भाग निकल आता है। उसके भाग निकलने वाला सीन बेहद कमजोर है और इसका फिल्मांकन सत्तर के दशक की फिल्मों की याद दिला देता है। उस समय भी स्मगलर पुलिस की गिरफ्त से ऐसे ही भाग निकलते थे। रोमांटिक दृश्यों में निर्देशक नीरज हमेशा से असहज रहें हैं, यहां तक के नायक की पत्नी हमेशा फोन पर नायक से कहती है कि कुछ भी करना पर मरना मत। फिल्म में चौंकाने वाले कई दृश्य हैं, जो फिल्म की यूएसपी भी है।